पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/९४

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महाभारतमीमांसा

में महाभारतमीमांसा * यानी यह अर्थ होना चाहिये कि जगत्म लिये इस मिथ्या शानका प्रतिपादन सत्य नहीं है। अपरस्परसंभतं' का अर्थ किया। जान पड़ता है कि असर अथवा कुछ संदिग्ध सा मालूम होता है। इसका पारसी तत्त्व-ज्ञानमें भी देहको प्रधान माम- यह भर्य हो सकता है कि जिन पदार्थोंसे कर विचार किया गया है। कुछ भी हो, यह जगत् बना है, अर्थात् पृथ्वी, आप, इसमें सन्देह नहीं कि ऐसे अनीश्वरवादी तेज, वायु और आकाश, वे सब एक दूसरे मत वैदिक कालसे प्रचलित थे। इनका से उत्पन्न नहीं हुए हैं। 'कामहैतुकम्' यह उल्लेख ऋग्वेदके सूत्रोंमें भी पाया जाता अन्तिम विशेषण तो निश्चयपूर्वक चार्वाकों- है, और मैक्समूलरने इनका वर्णन अपने केही लिये लगाया जा सकता है। उनका ग्रन्थमें किया है। मैत्रायण उपनिषद् कही यही मत है कि जगत्का हेतु केवल काम हुई कथा बहुत प्राचीन समयसे प्रचलित है, और कुछ नहीं; इस जीवनकी इति- होगी। इस उपनिषद्का समय निश्चित कर्तव्यता केवल मुखोपभोग ही है। यह नहीं है: तथापि इसमें सन्देह नहीं कि यह प्रकट है कि इस मतका स्वीकार बौद्ध प्रासुरी मत वेद-कालसे ही अर्थात् बुद्धके लोग नहीं करते। ऐसी दशामें स्पष्ट है कि पहले ही प्रचलित था।भगवद्गीतामें जिस- उक्त श्लोकमे बौद्ध मतोका दिग्दर्शन नहीं का उल्लेख किया गया है वह आसुरी मत किया गया है। यद्यपि निश्चयपूर्वक यह ही है और वह बहुत प्राचीन भी है। यह नहीं कहा जा सकता कि चार्वाकोका मत वर्णन और यह मत बौद्धोंके विषयमें बिल- क्या था,तथापि माधवने सर्वदर्शन-संग्रह- कुल उपयुक्त नहीं हो सकता।सारांश, यह में बृहस्पतिके श्लोक उद्धृत किये हैं उनसे | कथन बिलकुल गलत है कि भगवद्गीतामें कुछ प्रतीत होता है। परन्तु इस समय बौद्ध मतका उल्लेख है। गीता किसी प्रकार वृहस्पति-सूत्र उपलब्ध नहीं हैं। मैक्स बुद्धके अनन्तरकी हो ही नहीं सकती। मूलरने हिन्दू तत्वज्ञान पर जो ग्रन्थ लिखा. कुछ लोगोंका कथन है कि भगवद्गीता- है, उसमें इस सूत्रके सम्बन्धमें यह वर्णन में अहिंसा मतका स्वीकार किया गया है पाया जाता है-"इस समय बृहस्पति- और बौद्ध धर्ममें भी अहिंसा मत प्रति- सूत्र नष्ट हा गये है। कहा जाता है कि इन पादित है। जिस प्रकार बौद्ध धर्ममें जाति- सूत्रोंमें उन देहात्मवादी अथवा कामचारी निबंधका अनादर है और सब जातिके लोकायतिक यानी चार्वाक लोगोंके मत लोगोंको भिक्षु होनेका समान अधि- प्रथित थे, जो यह माना करते थे कि जो कार दिया गया है, उसी प्रकार भगवद्रीता- वस्तु प्रत्यक्ष देख नहीं पड़ती वह है ही में भी कहा गया है कि शुद्रोको, यहाँतक मही" आश्चर्यकी बात है कि इस अनीश्वर- कि श्वपचोंको भी, मोक्षका अधिकार है। घादी मतका प्रवर्तक देवताओंका गुरु इससे वे लोग अनुमान करते हैं कि भग- वृहस्पति हो। परन्तु ब्राह्मण और उपनिषद्- वनीता बौद्ध धर्मके प्रचारके अनन्तरकी में कथा है कि बृहस्पतिने असुरोको उनके है। परन्तु यह अनुमान गलत है। अहिंसा- नाशके लिये मिथ्या और अनर्थ-कारक तत्व हिन्दुस्तान में बहुत प्राचीन समयले तत्वज्ञान बतलाया था । उदाहरणार्थ, प्रचलित है। उपनिषदोंमें भी इस सत्वका मैत्रायण उपनिषद् ७६ में यह वर्णन है उपदेश पाया जाता है। उदाहरणार्थ, कि बृहस्पतिने शुक्रका रूप धारण करके, छांदोग्य उपनिषद् (प्रपाठक ,कांड १४) देवताभोंके लाभ और असुरोके माशके में कहा है:-