सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७०
महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

विण्यात थे, उन्होंने मिलकर वेदोंके अनिश्चित है, उसका अन्दाज केवल स्थूल निचोड़से मेरु पर्वत पर एक उत्तम शास्त्र- मानसे किया जाता है और वह भी अत्यन्त की रचना की । वही यह पञ्चरात्र है। प्राचीन समयका है। इसलिये इन प्रन्थों- उस ग्रन्थमें श्रेष्ठ लोकधर्मका विवरण से काल-निर्णयके लिये विशेष सहायता दिया गया था । मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, नहीं मिलती और इसी लिये हमने उनके पुलत्स्य, पुलह, क्रतु और वसिष्ट, ग्रही अवतरण नहीं दिये हैं । महाभारतमें सूत्रों उक्त चित्रशिखण्डी हैं। कहा गया है कि और धर्मशास्त्रोंका उल्लेख पाया जाता है, उस ग्रन्थमें एक लाख श्लोक थे। यद्यपि परन्तु किसीका नाम नहीं दिया गया यह ग्रन्थ काल्पनिक न हो, तथापि ऐति- है। मनुका नाम प्रसिद्ध है और वह बार हासिक रीतिसे यह निश्चय करना अस-बार देख पड़ता है। उसके बहुतेरे वचन म्भव है कि वर्तमान समयके प्रसिद्ध भी पाये जाते हैं। परन्तु यह निर्विवाद पञ्चरात्र-ग्रन्थ कब रचे गये थे; इसलिये । सिद्ध है कि मनुस्मृति महाभारतके अन- महाभारतके कालका निर्णय करनेके लिये न्तरकी है । हमने अाश्वलायन गृह्यसूत्रका कुछ साधन उत्पन्न नहीं होता। महाभारत- एक वचन ऊपर उद्धृत किया है जो महा- में पाशुपत-ग्रन्थ वर्णित न होकर पञ्चरात्र भारतमें पाया जाता है; परन्तु इससे यह प्रन्थ वर्णित है। इससे अनुमान होता है नहीं कहा जा सकता कि वह वचन उस कि उस समय पाशुपत-ग्रन्थ न होगा। सूत्रसे ही लिया गया है। आश्वलायन यदि होता तो जिस प्रकार सौतिने नाग- सूत्रके पहले महाभारतकी रचना हुई, यणीय उपाख्यानका समावेश महाभारतम कांकि उसमें महाभारतका उल्लेख है। किया है, उसी प्रकार पाशुपत-ग्रन्थका 'ब्रह्मसूत्रपदैः शब्दसे बादरायणके वेदान्त- भी समावेश किया होता। सौर उपासना-सूत्रोंका बोध नहीं होता। बादरायणके का उल्लेख द्रोण पर्वके ८२ वें अध्यायमें सूत्रोंमें महाभारतके वचनोंका आधार है। इस बातका पता नहीं कि यह उपा- लिया गया है, इसलिये वे महाभारतके सना ठीक वैसी ही थी जैसी ब्राह्मण अनन्तरके हैं। महाभारतमें न तो न्याय लोग हमेशा गायत्री मन्त्रसे किया करतं और वैशेषिकका और न उनके सूत्रोंका हैं, अथवा उससे भिन्न थी। यह भी ही उल्लेख है । सांख्ययोग और कपिलका समझमें नहीं आता कि सौर-उपासनाका नाम बार बार देख पड़ता है, परन्तु पत- मत कुछ भिन्न था या कैसा था। सौर जलिके योगसूत्रका उल्लेख नहीं है। सतके प्रन्थोंका कुछ भी उल्लेख नहीं है, योग-शास्त्र का कर्ता कोई और ही बत- अतएव इस विषय पर अधिक लिखनेकी लाया गया है । इससे पतञ्जलिका समय गुजायश नहीं। | महाभारतके अनन्तरका होता है। पाशु- इस प्रकार यहाँतक इस बातका विवे- पत और पाञ्चरात्र मतोंका उल्लेख है, बन किया गया है कि पहले अन्तःप्रमाण परन्तु उनके किसी ग्रन्थका उल्लेख से क्या सिद्ध होता है और काल-निर्णयके ! नहीं है । सप्तर्षि-कृत एक लक्षात्मक लिये कैसी सहायता मिलती है। इस विवे- पञ्चरात्र-ग्रन्थ उल्लिखित है। यद्यपि वह बनका सारांश यह है:--महाभारतमें वेद, काल्पनिक न हो तो भी यह नहीं कहा जा उपवेद, अङ्ग, उपाङ्ग, ब्राह्मण और उप- सकता कि वह किस समयका है, इसलिये निषदोंका उल्लेख है। परन्तु इनका काल उससे विशेष लाभ नहीं होता। संक्षेपमें,