पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१००

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96/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली सरदार और कोई सौ आदमी राजमहल के भीतर ही मारे गये। खून की नही बह निकली। राजा और रानी भयभीत होकर बनारस भाग आये । जंगबहादुर के लिए रास्ता माफ हो गया । इसलिए आप निष्कण्टक होकर मन्त्रित्व के आसन पर आमीन हुए। आपने सुरेन्द्र विक्रम शाह को राजा बनाया। जंगबहादुर के पूर्वजो ने नेपाल में अच्छे-अच्छे काम किये थे। वे एक मशहर घराने के थे। उन्होंने राज्य का अच्छा प्रवन्ध किया। उनके कोई सौ लड़के लड़कियों थी। उनका मम्बन्ध राज्य के प्रधान सरदारो और स्वयं महाराजधिराज के यहां करके, जंगबहादुर ने मारे राज-चक्र और सरदार-चक्र को अपने हाथ मे कर लिया। उन्होने अपनी एक कन्या का विवाह नेपाल के युवराज से भी कर दिया। 1850 ईमवी मे जंगबहादुर इंगलैड गये । वह उनकी बहुत खातिरदारी हुई । इंगलैंड में उन्होने अंगरेजी सभ्यता को ध्यान से देखा और अंगरेजो प्रचण्ड प्रतार का भी अच्छी तरह अनुभव किया । फल यह हुआ कि नेपाल लौटकर उन्होंने अपने देश के कानून में उचित फेरफार किये उन्होने अंग-भंग करने का दण्ड उठा दिया । मती की प्रथा में भी कुछ रुकावट कर दी गई । सेना में भी सुधार किया गया। माराण यह कि जंगबहादुर ने जिसमें प्रजा और देश का कल्याण समझा उसे करने में सकोच नही किया। विलायत से लौटने पर लोगो ने उन पर यह दोप लगाया कि ममुद्र पार जाने से वे धर्मच्युत हो गये। इममे वे मन्त्री होने लायक नहीं रहे। इन दोपारोपण करने वालो मे जगबहादुर के दो भाई भी थे-क मगे, एक चचेरे । इममे महागजाधिराज के एक भाई भी शामिल थे । ये लोग नेपाल से हटा दिये गये और इलाहाबाद में आकर रहने लगे। पर 1853 ईसवी में उनको नेपाल लौट जाने की आज्ञा मिल गई। 1857 ईसवी में सिपाही-विद्रोह में जंगवहादर ने बहुत मी फ़ौज भेज कर अंगरेज-राज की मदद की। इसके उपलक्ष में गवर्नमेट ने तगई का एक हिम्मा नेपाल को दे दिया और जंगबहादर को जी० मी० वी० की पदवी से विभूपित किया। 1873 ईसवी मे वे जी० मी० वी० आई० बनाये गये । 1877 मे जगबहादर की मृत्यु हुई। अपने समय तक यही एक ऐमे मन्त्री हुए जिनकी म्वाभाविक मृत्यु हुई। महागज जंगबहादर के ज्येष्ठ पुत्र जनरल पद्म जग इम समय प्रयाग में रहते है। 1857 ईमवी में गजराजेश्वर मातवे एडवर्ड सैर के लिए हिन्दुस्तान आये थे। उस समय आप प्रिम आव वेल्म' कहलाते थ। आपने नेपाल की तराई मे शिकार खेला था। गिकार का मब प्रबन्ध महाराज जगवहादुर ने खुद किया था । वे प्रिस से मिलने आये थे उनके आतिथ्य में प्रिम बहुत प्रसन्न हुए थे। महाराज जगबहादर का गंग्व लामा नामक एक योगी पर बहुत प्रेम था। इस योगी को ब्रजोली मुद्रा सिद्ध थी। वह अपने शिश्न से शंख वजा सकता था और उसी मार्ग से कटोरा भर दुध चढ़ा लेता था। 1885 ईसवी में नेपाल के मरदार मण्डल में फिर विद्रोह हुआ। उममें उस समय के मन्त्री, और जंगबहादुर के एक बेटे और एक पोते की जान गई । विद्रोह-कर्ता म.लि. 104