पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१२७

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जापान के स्कूलों में जीवन-चरित शिक्षा जापान के स्कूलों में जो किताबें जारी होती है, उनमें प्रसिद्ध प्रसिद्ध जागनियो के सचित्र जीवन-चरित्र रहते है। उनको पढा कर चरित-नायकों के उदाहरणो के द्वारा लडको को यह सिखलाया जाता है कि 'अच्छा जापानी' होने के लिए कौन कौन से गुण दरकार होते है । अच्छे जापानी के कुछ लक्षण सुनिए-अच्छा या आदर्श जापानी वह है जो अपने माता-पिता, भाई-बहन और कुटुम्बियों से सम्बन्ध रखनेवाले मब कर्त्तव्यो का मन लगाकर पालन करता है; जो कभी इस बात को नही भूलता कि अपने पूर्वजों को भक्ति- पूर्ण दृष्टि से देखना उमका धर्म है; जो मालिक होकर अपने आश्रितों पर कृपा रवता है; जो आश्रित होकर अपने मालिक का हितचिन्तन करता है । आदर्श जापानी अपने ऊपर ये गये एहसान को कभी नहीं भूलता; जो कुछ वह करता है, सचाई के माय करता है; जिम बात का वह वादा करता है, उसे पूरा करता है; दूसरों के साथ वह हमेशा उदारता का व्यवहार करता है। दया और दाक्षिण्य को अच्छा जापानी कभी नही भूलता, जो बात मच है, उसका वह जी-जान से पक्ष लेता है; जो दीन-दुखिया है, उनको वह दया-दृष्टि से देखता है। सामाजिक नियमो को वह सबसे अधिक इज्जत करता है, समाज की अधिकाधिक उन्नति के लिए वह हमेशा यत्नशील रहता है; विदेशियो के साथ भी वह कभी बुरा बर्ताव नहीं करता। आदर्श जापानी अपनी शारीरिक शक्ति को हमेशा बढ़ाता रहता है, लाभदायक विद्या और कला-कौशल का ज्ञान प्राप्त करने में हमेशा तत्पर रहता है; शौर्य सहनशीलता, आत्मनिग्रह, मिताचार विनीत भाव की वह हमेशा वृद्धि करता रहता है। उसे हमेशा इस बात का ध्यान रहता है कि काम-काज में, व्यापार में, प्रतियोगिता, अर्थात् दूसरो के साथ चढ़ा-ऊपरी करने मे, रुपया कमाने में और दूसरो के दिल में अपना विश्वास जमाने में उसे किस तरह का व्यवहार करना चाहिए । वह अच्छे काम करने की आदत डालता है, वह नेकी करना सीखता है; विद्या पढ़ कर उससे व्यावहारिक लाभ उठाने का वह अभ्यास करता है, और आत्मोन्नति करने की वह नई नई तजवीजें सोचता रहता है । आदर्श जापानी अपने देश का हृदय से आदर करता है और राजभक्ति तथा स्वदेश-प्रीति की वृद्धि करके अच्छे नागरिक होने के फ़र्ज को अदा करता है। अच्छा जापानी इसी तरह के व्यवहार से अपनी और अपने कुटुम्ब की उन्नति करता है; और अपने देशवालो ही के लिए नही किन्तु सारे संसार के फ़ायदे के लिए, जो कुछ वह कर सकता है, हमेशा करने के लिए तैयार रहता है। सदाचार और सुनीति की शिक्षा में जापानी हिन्दुओ से कम नही । [फरवरी, 1906 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'संकलन' पुस्तक में संकलित ।].