122 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली कूलता की । तिस पर भी मतलब से अधिक चन्दा इकट्ठा हो गया। जितनी इमारतें दरकार थीं, सब बन गई और विश्वविद्यालय स्थापित हो गया। उसके स्थापित होने के पहले ही उसमें दाखिल होने के लिए इतनी अर्जियां आई कि कई सौ अर्जियाँ नामंजूर करनी पड़ीं; क्योंकि सबके लिए जगह ही न थी। इस विश्वविद्यालय में इस समय कोई 700 स्त्रियाँ हैं। उनकी शिक्षा के लिए 49 अध्यापक, 9 शिक्षक और व्याख्यान देने वाले है । अध्यापकों में सिर्फ दो इंगलैंड के हैं और एक अमेरिका का; बाकी सब जापान के। जिन-जिन विषयों की शिक्षा स्त्रियों को अपेक्षित है, वे सब विषय यहाँ सिखलाये जाते हैं। बच्चों को पालन-पोषण, सफ़ाई, कला-कौशल और गृहस्थी के काम-काज के सिवा शिष्टाचार, गाना-बजाना, तसवीर खींचना और फूलों की मालायें और गुलदस्ते आदि बनाना भी मिखलाया जाता है। अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शन, भूगोल, कानून, साहित्य इत्यादि विषयों की भी शिक्षा दी जाती है। जो लड़कियों और स्त्रियाँ विश्व- विद्यालय के बोडिंग-हाउस में रहती हैं, उनको अपने हाथ से गृहस्थी के काम-काज करने की शिक्षा स्त्री-अध्यापिकायें अपने पास रख कर देती हैं। [जनवरी, 1906 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'संकलन' पुस्तक में संकलित ।]
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