पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१२९

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अंगरेजी प्रजा का पराक्रम / 125 कुल 63 दफ़ायें हैं । उनमें से 3 सबसे अधिक महत्त्व की हैं। उनका मतलब यह है- (1) आदमी चाहे अमीर हो चाहे ग़रीब, सबके हक़ एक से समझे जायें । (2) कानून के अनुसार अपराध माबित हुए बिना किसी आदमी को कैद करने का अधिकार राजा को नहीं और न उसे निज के लिए किसी से रुपया-पैसा वसूल करने ही का अधिकार है। (3) न्याय के कामों में घूस न ली जाया करे; सवका न्याय हुआ करे, कोई उमसे वंचित न रक्खा जाय; और न्याय होने में देर न की जाया करे । इन बातों में न तो कुछ अपूर्वता ही है और न नवीनता ही । तथापि इंगलैंड की प्रजा ने इस विषय का इक गरनामा जॉन से लिखवा लिया और उसके अनुसार काम करने के लिए उसे लाचार किया। जितने अंगरेज है सब इस मनद को पूज्य समझते हैं । उन्हें इसका बडा अभिमान है । वे इसे बहुत वही चीज़ समनते है । वे मममने है, मानो उन्होंने लोक-स्वतन्त्रता के एक बहुत ही मजबूत किले पर कब्जा कर लिया है। इसे वे बहुत होशियारी से रखते है। यह इकरारनामा मिलने के दो मौ वर्ष वाद तक उन्होंने इसे 37 दर्फ फिर से नया किया है ! दूमरे पराक्रम का नाम है हीबियम कार्पम । इस कायदे को अंगरेज लोग मैग्ना- कार्टा से कुछ ही कम महत्त्व का समझते है। 1679 ईसवी में, दूसरे चार्ल्स राजा के समय, अविश्रान्न परिश्रम और घोर वाद-विवाद करके, अंगरेज लोगो ने इसे पारलिया- मेट से मजूर कग लिया। पहले यह रीति थी कि यदि कोई आदमी राजा का अपमान या अपगध करता था तो उसके अपराध का न्यायानुसार विचार न करके जब तक राजा चाहता था उसे कैद रखता था। इस रीति के प्रचलित रहने से अनेक निमगधी आदमियों को बहुत मुसीबते झेलनी पड़ती थी। प्रजा ने उसे बन्द करने ही में अपना कन्याण ममझा । मनत प्रयत्न करके आखीर में उसे कामयाबी हुई । पारलियामेट ने यह क़ानून बना दिया कि अपगध करने के मन्दह मे यदि पुलिस किसी आदमी को पकड़े तो इतने घण्टे के भीतर पुलिस को उसे विचार के लिए न्यायाधीश के सामने हाजिर करना ही चाहिए । और जो आदमी एक दफ़ किमी मुक़द्दमे मे निरपराधी मावित हो जाय उस पर फिर उसी आरोप के सम्बन्ध में कोई अभियोग न चलाया जाय । तीसरा पराक्रम अँगरेजी प्रजा का बिल आफ़ गइट्स है। तीसरे विलियम राजा समय में, 1689 ईसवी मे, तत्कालीन अनेक झगडे-फ़िमाद और गड़बडो के मिटाने के लिए प्रजा ने यह कायदा पारलियामेट में मजूर कराया। इसकी मुख्य-मुख्य बातें नीचे दी जाती है- (1) राजा या पारलियामेंट मे से किसी एक को अकेले यह शक्ति नहीं कि वह किसी कानून को रद कर सके, या उसे कुछ समय तक मुलतवी रख सके । (2) पारलियामेट से सलाह किये बिना राजा को किसी तरह का कर लगाने का अधिकार नही। अगर कोई कर इस तरह लगाया जाय तो वह बकायदा समझा जाय।