पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१३५

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चीन के विश्वविद्यालयों की परीक्षा-प्रणाली / 131 प्राचीन प्रथा है कि एक नियत संख्या से अधिक परीक्षार्थी किसी परीक्षा में पास नहीं किये जाते, चाहे उम्मेदवारों की तादाद कितनी ही अधिक क्यों न हो । योग्यता जाँचने का साधन भी बड़ा विचित्र है । वह यह है कि उम्मेदवार नियत संख्या के अन्य उम्मेद- वारों से अधिक योग्य हों। कभी कभी इस प्रथा से घोर अन्याय हो जाता है। गान्टुग, चेकियांग, केन्टन आदि प्रान्तों में हजारों विद्यार्थी परीक्षा में शरीक होते हैं। यदि पास किये जाने वालों की संख्या केवल तीस हुई तो सिर्फ इतने ही पास किये जायेंगे। शेप अपना-मा मुँह लेकर अपने घर लौट जायेंगे। इसके विरुद्ध शान्सी, शेन्मी, कान्मू आदि प्रान्तों में बहुत ही थोड़े अर्थात् तीस चालीस परीक्षार्थी होते हैं। उनमें से प्रायः मभी पास कर दिये जाते हैं । फल यह होता है कि एक जगह अत्यन्त अयोग्य उम्मेदवार पाम हो जाता है और दूसरी जगह उमसे कही अधिक योग्य परीक्षार्थी फेल हो जाता है । मुनते हैं, किसी किसी जिले में शासनकर्ता गली-गली घूम कर नियत संख्या के उम्मेदवारों को इकट्ठा करता है । 'Hsiu Tsai' पदवी-धागे लोग लाल झब्बेदार टोपी पहनते हैं, जिसमें सुनहला बटन लगा रहता है । यह बटन प्रकट करता है कि यह कोई सरकारी कर्मचारी है। दूसरी परीक्षा जिसे 'Chuken' कहते हैं, तीन वर्ष में एक दफ़े, केवल प्रान्तिक राजधानियो में, होती है। इस परीक्षा के लिए चीन की राजधानी पेकिन से विशेष परीक्षक आते हैं। जिस स्थान पर परीक्षा होती है, वह देखने योग्य होता है। प्रत्येक उम्मेदवार एक छोटी सी झोपड़ी में ठहराया जाता है। वहाँ वह एक तख्ते पर उकडू बैठकर अपने निबन्ध लिखता है । उसके सामने एक विचित्र प्रकार की छोटी-सी मेज़ भी रहती है। ये झोंपड़ियाँ एक लम्बी कतार में बनी होती हैं और संख्या में आठ हजार के लगभग होती हैं । वे इतनी गन्दी रहती हैं कि उनमें एक दिन भी ठहरना किल है। पर बेचारे पदवी-लोभियों को उसी नरक-तुल्य स्थान में पूरे तीन दिन रहना और वहीं अपने निबन्ध लिखना पड़ता है। फिर एक दिन की छुट्टी मिलती है। इसके बाद तीन दिन और इस काल-कोठरी में उन्हें बिताने पड़ते हैं। उस मैदान में स्थान स्थान पर बुर्ज भी होते हैं। परीक्षक लोग उन्हीं बुजों में बैठ कर दिन-रात, चौबीसों घण्टे, उनकी निगरानी करते हैं । परीक्षा की इस अद्भुत प्रणाली के कारण उम्मेदवारों को बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं । पर साथ ही साथ उन्हें धोखेबाजी करने का अवसर भी हाथ आता है । कितने ही परीक्षा देने वाले किताबों के ढेर के ढेर टोकरियों में रक्खे हुए बैठे नक़ल किया करते हैं । जहाँ आठ-आठ हजार आदमी एक साथ परीक्षा देते हो, वहाँ अपने बदले किसी योग्यतर बाहरी आदमी से परीक्षा दिलवा देना और खुद पदवी के अधिकारी बनना कौन-सी बड़ी बात है ? ऐसी वालबाजियाँ अकसर हुआ करती हैं। उम्मेदवारों के इस टिड्डी-दल में से सिर्फ सत्तर आदमी पास किये जाते हैं। परीक्षा की सख्ती की हद हो गई ! तीसरी और सबसे ऊंची परीक्षा 'Gim Shih' की है। यह केवल चीन की राज- धानी पेकिन में होती है ।'Chuken' पदवी-धारी सब प्रान्तों से इसमें शरीक होते हैं । इसका ढंग ठीक वैसा ही होता है जैसा कि दूसरी परीक्षा का । इसमें भी बहुत बोड़े