अमेरिका के गाँव जिस तरह भारतवर्ष अत्यन्त दरिद्र है, उसी तरह अमेरिका अत्यन्त धनवान् है । यह बात दोनो देशों के गाँवों की तुलना करने से अच्छी तरह प्रकट हो जाती है। हमारे देश के गाँव दरिद्रता और मूर्खता के केन्द्र-स्थान है । अकेला गॅवार शब्द ही इस बात का माक्षी है । गाँवो के घर निगे मिट्टी के झोंपड़े होते है । रहने का घर, चौपाइयो का घर, कूडा- घर आदि सब एक ही जगह होते हैं । एक ही तालाब में गाँव भर के लोग नहाने, कपड़े धोते, पशुओ को पानी पिलाते कभी कभी स्वयं उसका पानी पीते हैं। इसके सिवा वे लोग आधे नंगे, आधे भूवे रह कर अपना जीवन बिताते है। उनके लिये 'काला अक्षर भैम बराबर' है । दीन-दुनिया की उन्हें कुछ खबर नहीं । मभ्य संसार की ऐशो-आराम की चीजें उन्हें स्वप्न में भी नसीब नहीं । मतलब यह कि यदि गांवों के झोंपड़ों के आदि- वासियों को दरिद्रता और अविद्या का मूर्तिमान अवतार कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति नहीं। परन्तु अमेरिका की दशा यहाँ से ठीक उलटी है। वहाँ के गाँव हमारे देश के अधिकांश शहरों से अधिक अच्छी हालत में है । कुछ दिन हुए, सन्त निहालसिह का लिखा हुआ एक लेख इम विषय पर 'माडर्न रिव्यू' में निकला था। उसमें उन्होने उदाहरण- स्वरूप अमेरिका के एक गाँव का वर्णन किया है। मिह जी के उस लेख से हमारे पूर्वोक्त कथन की पुष्टि होती है । इसलिए उसकी मुख्य-मुख्य बातें हम यहाँ पर लिखते हैं । इससे पाठकों मालूम हो जायगा कि अमेरिका कितना उन्नत, मभ्य और सम्पत्ति- शाली देश है। निहालसिह महाशय ने जिम गाँव का वृत्तान्त लिखा है, उसका नाम केम्ब्रिज है। वह अमेरिका की इलीनाई (Illinois) रियासत में है। जहाँ पर यह गाँव बसा हुआ है, साठ वर्ष पहले वहाँ जंगली जानवर रहते थे; मनुष्य का मीलो तक पता न था। परन्तु इस समय वहाँ जंगली जानवरो का नामोनिशान तक नहीं। एक सुन्दर छोटा-सा गांव बस गया है। उसका रकबा कोई एक वर्गमील होगा और मब मिला कर कोई चौदह सौ मनुष्य उसमे रहते हैं। परन्तु इतना छोटा गांव होते व मी केम्ब्रिज उन्नति की चरम सीमा तक पहुँच गया है। उसके बायः न भी घर पक्के, दो-मंज़िले हैं। और करीने से बने हुए हैं। रेलवे स्टेशन, तार-बर, डाकखाना, स्कूल, अस्पताल आदि उसमें सब कुछ है । गाँव भर में रात को बिजली की रोशनी होती है । जगह-जगह टेलीफ़ोन लगे हुए हैं । प्रत्येक चौराहे और मकान में गहरे कुएँ और पम्प बने हुए हैं । उनका निर्मल और रासायनिक क्रिया से साफ़. किया हुआ जल अत्यन्त स्वादिष्ट और स्वास्थ्यकर है । गाँव भर में ऐसी कोई सड़क नहीं जिस पर पत्थर न जड़े हों। सड़कों की तो बात ही क्या है, गलियों तक में ईटें लगी हुई
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१३७
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