पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१४४

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यद्ध-सम्बन्धी अन्तर्जातीय नियम सभ्य गष्ट्रों ने मिल कर कुछ ऐसे निमय बनाये हैं, जिनका पालन उन्हें युद्ध के समय करना पड़ता है। ट्रिपली के सम्बन्ध में टर्की और इटली का युद्ध शान्त हुआ ही था कि टर्की और बालकन-प्रदेश के मान्टिनिगगे, सरविया, बलगेरिया और ग्रीस में युद्ध छिड़ गया। अतएव ऐसे अवसर पर उन नियमों का प्रकाशन असामयिक न होगा । वे नियम संक्षेप में, नीचे दिये जाते हैं- जब कोई राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र को किसी तरह की हानि पहुँचाता है या उसका अपमान करता है तब उमसे कहा जाता है कि हानि का बदला दो और अपमान के लिए माफी माँगो । यदि सहज ही में यह काम हो जाता है तो युद्ध की तैयारी नहीं होती। हानि और अपमान करने वाले के शासन के लिए युद्ध अन्तिम साधन है । अन्य उपायों से जब तक काम चल सकता है तब तक युद्ध नहीं ठाना जाता। राजीनामा कर लेना, किसी अन्य गष्ट्र का बीच में पड़कर मेल करा देना, अथवा पंचायत द्वारा झगड़े का निपटाग हो जाना आदि बातों ही की, युद्ध के पहले, शरण लेनी पड़ती है । यदि इनमे कार्य सिद्ध न हुआ तो वह राष्ट्र जिमका अपमान आदि होता है, बाहुबल का प्रयोग करता है । इस समय तक भी यथार्थ में युद्ध नहीं छिड़ता; शत्रु को केवल तंग किया जाता है । जहाज़ो द्वारा उसके बन्दरगाह और समुद्र-तट घेर लिये जाते हैं; तथा उमके जहाजो और माल अमवाव पर अधिकार कर लिया जाता है । जब कोई समुद्र-तट या बन्दरगाह घिग होता है तब किसी अन्य राष्ट्र का भी कोई जहाज घेरे के बीच से नहीं निकल सकता । घेरे के बीच से बाहर निकलते अथवा भीतर जाते हुए पकड़े जाने पर वह जब्त कर लिया जा सकता है। यदि युद्ध न हुआ, मेल हो गया, तो जितने जहाज अथवा जो माल हाथ लगता है वह सब जिनका होता है उनको लौटा दिया जाता है। शत्र के समुद्र में फिरने वाले उमके अथवा उमकी प्रजा के जहाज भी पकड़ लिये जाते है। इस काम को Reprisal (अर्थात् बदला) कहते हैं । यह 'बदला' दो प्रकार से लिया जाता है। गष्ट्र अपने शत्रु और उसकी प्रजा के जहाजो और आदमियों को पकड़ने के लिए अपने कर्मचारियों को और गैर-सरकारी लोगों को भी ऐसा ही करने के लिए अधिकार देता है। परन्तु इस प्रकार के बदले की प्रथा अच्छी नही समझी जाती । युद्ध के पूर्व तो उमका अवलम्लन बहुत ही कम किया जाता है । इतना होने के बाद या तो मेल हो जाता है या युद्ध छिड़ जाता है। यदि युद्ध हुआ तो ऐसी अवस्था में शत्रु को युद्ध की सूचना देने की कोई आवश्यकता नहीं। 1894 ईसवी में चीन-जापान में युद्ध हुआ था । छेड़छाड़ 25 जुलाई से आरम्भ थी। इसी तारीख को चीन का एक जहाज डुबो दिया गया था और दूसरा जापान ने छीन लिया था । परन्तु युद्ध-घोषणा, जिसकी फिर कोई आवश्यकता न थी, जापान ने पहली अगस्त .