पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१४३

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विलायत में उपाधियों का क्रय-विक्रय / 139 अधिकार नहीं कि अमुक व्यक्ति को किसलिए अमुक उपाधि मिली। सम्राट भी नियम- बद्ध हैं । वे भी उपाधि-दान के मामले में दखल नहीं दे सकते । वहाँ कानून ही ऐसा है । उपाधियो के क्रय-विक्रय के कारण अन्याय भी बहुत होता है । प्राय ऐमा हुआ है कि उपयुक्त पात्रों को उपयुक्त उपाधि नही दी गई। इस कारण उन बेचारो को बहुत कुछ मनस्ताप हुआ। विलायत में अब इस प्रथा के विरुद्ध लोगों ने ज़ोर से आन्दोलन करना आरम्भ कर दिया है। लोगों ने दोनों राजनैतिक दलो से अपने अपने कोश का हिसाब प्रकाशित करने के लिए अनुरोध किया है। हिसाब प्रकाशित करने से भण्डा फूट जायगा । इस कारण दोनो दल अभी तक इस सम्बन्ध में आनाकानी करते जाते है । लोगो ने एक दूसरी भी युक्ति निकाली है। वे उन व्यक्तियों से, जो कामन्स सभा के सदस्य होने के लिए उनसे वोट मांगते है, इस बात का वचन लेने लगे है कि वे सदस्य होकर पारलियामेंट मे दोनों दलो के गुप्त कोशों की जाँच के विषय में घोर आन्दोलन करेंगे । इन बातों से प्रकट होता है कि उपाधियों के क्रय-विक्रय का बाज़ार थोड़े दिनो में ठण्डा पड़ जायगा। तथास्तु। [जलाई, 1912 की 'सरस्वतो' में प्रकाशित । 'संकलन' पुस्तक में संकलित ।)