पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१४८

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144/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली आने और एक नियत काल के भीतर वहाँ से सकुशल लौट जाने की आज्ञा मिल जाती - युद्ध आरम्भ हो जाने पर अन्य राष्ट्रों के जहाज़ो तक की बहुधा तलाशी ली जाती है । यह तलाशी इसलिए ली जाती है जिसमें जहाज़ की यथार्थ राष्ट्रीयता का पता लग जाय और यह मालूम हो जाय कि उसमें किस प्रकार का माल है। और वह कहाँ जाता है । इस प्रकार की तलाशियों केवल युद्ध-काल ही में ली जाती है, शान्ति के समय में नहीं । तटस्थ राष्ट्रों के सैनिक जहाज़ कभी नही देखे जाते, हाँ उनके व्यापारी जहाजो की तलाशी बहुधा ली जाती है । तलाशी लेने के लिए जहाज़ पहले रोके जाते हैं । फिर उनका माल देखा जाता है कि वह ऐसा तो नहीं जिसका ले जाना युद्ध-काल में वर्जित है। सामुद्रिक डाकुओं के जहाज, अथवा ऐसे जहाज जिन पर डाकुओ के होने का सन्देह हो, किसी भी समय पकड़े जा मकते है। व्यापारी जहाज गष्ट्रीय सेवा के लिए सैनिक जहाज़ का रूप धारण कर लिया करते है। परन्तु जो व्यापारी जहाज घर से तो व्यापारी बनकर निकलता है और रास्ते में सैनिक बन जाता है उसकी हैमियत सामुद्रिक डाकुओ के जहाज़ ही की तरह समझी जाती है । युद्ध आरम्भ होते ही एक प्रश्न वडे ही महत्त्व का उत्पन्न हो जाता है। वह यह कि कौन राष्ट्र तटस्थता की नीति का अवलम्बन करेगा और कौन दो पक्षो में से किसी एक की महायता करेगा। तटस्थ राष्ट्र का कर्तव्य है कि वह दोनो पक्षो मे से किमी को भी किसी प्रकार की सहायता न दे। लड़ने वाले पक्षों का कर्तव्य है कि तटस्थ राष्ट्रों के अधिकारो की कभी अवहेलना न करे । तटस्थ राष्ट्र किसी पक्ष को शस्त्रो से सहायता नहीं दे सकता, चाहे उसने युद्ध के पूर्व इस प्रकार की सहायता देने का किसी पक्ष को वचन ही क्यो न दिया हो। वह किसी पक्ष को ऋण भी नही दे सकता। वह किसी पक्ष की सेना को भी अपनी भूमि पर से नहीं निकलने दे सकता । वह जहाज या किसी प्रकार के शस्त्र नहीं बेच सकता । नियम है कि वह अपनी भूमि और अपने समुद्र पर दोनो पक्ष वालों को लड़ने न दे। यदि किमी पक्ष की सेना उसकी भूमि पर से निकलना चाहे तो उसे तितर-बितर कर दे; उसके शस्त्र छीन ले और उसकी सीमा में कैद किये गए किसी पक्ष के मैनिक कैदियों को छुडा दे । लड़ने वाले दलों का भी कर्तव्य है कि तटस्थ राष्ट्र के गन्य में किसी प्रकार का उत्पात न करें, न वहाँ सिपाही भरती करें और न वहाँ से किसी प्रकार की रसद ही लें। उनके जहाजो को, यदि उनमें कोई सन्देह-जनक माल न हो, वे न छेड़ें। यदि किसी प्रकार से उनके हाथों से तटस्थ राज्य को कोई क्षति पहुँचे तो उसकी पूर्ति करने और उसके लिए क्षमा मांगने को वे तैयार रहे । उन्ही जहाज़ों की तलाशी ली जाती है और वही जहाज़ पकडे जाते हैं जिन पर 'वजित' मामान था । वजित मामान से युद्ध-सम्बन्धी वस्तुओं ही का मतलब है । घोड़े, गन्धक, शोरा, जहाज़ बनाने का सामान-जैसे शहतीरें, इंजिन, मस्तूल, बादवान, इंजिन की कलें, रस्सियाँ, ताँवा, राल और सन आदि चीजें वजित समझी जाती हैं। जहाज पर रुपया, पहनने के कपड़े और कच्ची धातुओं का होना भी वजित मान लिया गया है। म. दि. र०.4