पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१६३

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कावागुची की तिब्बत-यात्रा | 159 की स्थापना की । वह भारत का रहने वाला था। उसने इस बात पर जोर दिया कि धर्माचरण के लिए संन्याम-ग्रहण बहुत जरूरी है। उस समय बहुत से लोगों को प्राचीन सम्प्रदाय से घृणा होने लगी थी; क्योकि उसकी शिक्षाओं का समाज पर बुरा असर पहुंच रहा था। पहले तो उन्हें नवीन सम्प्रदाय में आने का साहस न हुआ; किन्तु काल-क्रम से उन्होंने इसे अपनाना शुरू किया। आश्चर्य की बात है कि तिब्बत में कही कही मुमलमान भी पाये जाते हैं। इनमे से कुछ चीन से और कुछ काश्मीर से जाकर यहाँ बम गये है । कावागुची ने लिखा है- "लासा और शिगात्ज़े नगगे में इनकी संख्या करीब 300 के है । ये लोग अपने धाम्मिक विश्वासों में बड़े कट्टर हैं । लामा में इनकी दो ममजिदें है-एक चीनी मुसलमानों के लिए, दुसरी काश्मीरी मुसलमानों के लिए । इनके आचरण और विश्वास पर बौद्ध धर्म का बहुत कुछ प्रभाव पडा है । तिब्बत में इस धर्म का अस्तित्व देख कर मुझे बड़ा कौतूहल हुआ।" ईसाई पादरी भी तिब्बत में अपना धर्म फैलाने का बराबर प्रयत्न करते रहते हैं। गर तिब्वती लोगों को धन का लोभ दिया जाता है-सैकड़ों तरह के सब्ज बाग़ दिखाये जाते हैं । बाइबिल के कितने ही अनुवाद तिब्बती भाषा में छप चुके हैं । पुस्तको में बौद्ध धर्म की निन्दायें की जा चुकी हैं। किन्तु, तो भी, तिब्बती लोगों को ईमाई धर्म में विशेष श्रद्धा नहीं । दार्जिलिंग में बहुत से तिब्बती ऐसे है जो घर मे तो बुद्धदेव की मूर्ति पूजने है, पर प्रत्येक रविवार को, रुपये के लोभ से, गिरजाघरो में जाकर ईसा का गुण- गान करते है। बौद्ध धर्म फैलने के पहले तिब्बत में बोन धर्म का प्रचार था। यह अब नाममात्र को रह गया है । इसमें और बौद्ध धर्म में अब कोई विशेष भेद भी नही। तिब्बत में बौद्ध धर्म की अवस्था बहुत ख़राब है । वह अनेक दोषों से आच्छादित सा हो गया है । नाम के लिए तो सभी बौद्ध है; पर महात्मा बुद्ध के उपदेशों का किसी को ख़याल भी नहीं । कावागुची ने कहीं कही लोगों को इस प्रकार प्रार्थना करते हुए देखा था- "हे दशो दिशाओं में रहने वाले बुद्ध और बोधिसत्त्व । मैंने भूत काल में जो दुरा- चरण किये है उनके लिए आप से क्षमा चाहता हूँ। नर-हत्या, स्त्री-हरण, वैर-विरोध आदि एक भी पाप मुझसे नहीं बचा। मेरे दोषों पर ध्यान मत दीजिए । यही नहीं, मुझे तो यहाँ तक आशा है कि अगर मुझसे भविष्यत् में भी ऐसे ही दोष हो जायँगे तो आप मुझे क्षमा प्रदान करेगे । मुझे अपने भूत तथा भविष्यत् कर्मों के लिए अफ़सोस है । अतएव मैं प्रायश्चित्त करता हूँ !" जन-शिक्षा तिब्बत में शिक्षा का यथेष्ट प्रचार नहीं । बौद्ध-मठों को छोड़ कर ऐसे कोई स्थान नहीं जहां लोगों को अच्छी शिक्षा दी जाती हो । सरकार की ओर से जो विद्यालय खुले हुए हैं उनमें सर्व-साधारण को पढ़ने का अधिकार ही नहीं। खास-खास जाति के लोग