162 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली तैयारियां होती हैं । बहुत से लोग निमन्त्रित किये जाते हैं । यदि बौद्ध-मठ दूर हुआ तो बालक अपने आत्मीय जनो से बिदा मांगकर गुरु यहाँ चला जाता है। वहां अपनी पढ़ाई समाप्त करके बहुत दिनों के बाद घर लौटता है। जितने संस्कार लडकों के होते हैं उतने लड़कियों के नहीं होते। आचार-व्यवहार तिब्बती लोग बहुत मैले कुचैले होते हैं। वे अपने शरीर धोते ही नहीं । बहुत लोग तो आमरण एक बार भी अपना बदन साफ़ नही करते । गांवों में बहुधा लोगो को इस बात का अभिमान होता है कि उन्होंने कभी जल से स्नान नहीं किया। पुजारियों और लामाओं में इतनी विशेषता होती है कि वे अपने मुंह और हाथ, समय समय पर, माफ़ किया करते हैं । तिब्बत के लोगो का ख़याल है कि स्नान करने से मनुष्य का सारा सुख उसके शरीर से धुलकर निकल जाता है । विवाह के समय स्त्री की जाति-पाति और धन-दौलत के सिवा यह भी देखा जाता है कि उसके शरीर पर कितना मैल जमा हआ है ! यदि उसके हाथ-पैर कुछ साफ़-सुथरे होते है तो वह भाग्यहीन समझी जाती है । कहा जाता है कि उसका सब सुख उसके बदन के मैल के साथ जाता रहा । छोटे दर्जे के लोग कभी अपने कपड़े नही बदलते। उनके साथ बैठकर खाने से विदेशियों को घृणा होती है । और लोगो की अपेक्षा पुजारी और लामा लोग ही कुछ सफाई के नियमों का पाचन करते हैं। तिथि, लग्न इत्यादि देखने के लिए तिब्बत मे लोग पंचांग काम में लाते है। यह पंचांग भारतीय या चीनी ढंग का नही, किन्तु तुर्किस्तानी ढग का होता है। विदेशियो को यह पंचांग देखकर बहुत आश्चर्य हो सकता है। क्योकि इसमें कभी तो एक ही दिन सप्ताह में दो बार लिखा जाता है, और कभी नवमी तिथि बाद दशमी नहीं, किन्तु एकादशी का उल्लेख रहता है । जो दिन शुभ माना जाता है वह एक ही हफ्ते में दो दफ़े लिखा जाता है । जो अशुभ समझा जाता है उसका पंचांग में नाम तक नहीं दिया जाता। पंचांग बनाने का काम हर साल चार सरकारी अफ़सरों को सिपुर्द किया जाता है। किसी विषय पर मतभेद होने पर निर्णय का काम पण्डित से लिया जाता है। जो पण्डितजी कह देते है वही मानना पड़ता है। इस प्रकार के पण्डित तिब्बत में गाँव गाँव पाये जाने हैं। यही वहाँ के भविष्यद्- वक्ता हैं। बिना इनकी राय लिये कोई भी काम नही किया जाता। दलाई लामा के दरबार में भी इनका वड़ा सम्मान है । यदि कोई मन्त्री गुरुतर अपराध करता है तो ऐसे ही किसी पण्डित से उसका प्रायश्चित्त पूछा जाता है । पूछा जाता है कि उसको क्या सजा मिलनी चाहिए। यदि मन्त्री ने पहले ही से उस पण्डित का हाथ गरम कर दिया तो वह उत्तर देता है-इसको दण्ड मत दो। ऐसा करने से देश के ऊपर आफ़त आने का डर है। तिब्बत में गरमी के दिनों में ओले बहुत गिरते हैं । इससे चने की फसल को बड़ा नुकसान पहुंचता है । ओलों से फसल की रक्षा करने के लिए प्रत्येक गांव में एक पुजारी ।
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