पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१६५

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कावागुची की तिब्बत-यात्रा | 161 अंगूठियों का व्यवहार तो एक सामान्य बात है। औरतों के जूते भी देखने में बड़े अच्छे जान पड़ते हैं। सब प्रकार से सजधज कर औरतें कभी कभी अपने मुंह लाल रंग से रंग लेती है। उनका विश्वास है कि इससे उनकी शोभा दुगुनी हो जाती है। तिब्बती औरते बहुत खूबसूरत नहीं होती । देखने में वे जापानी औरतो के समान होती हैं। तिब्बती औरतो का स्वभाव अच्छा नहीं होता। उन्हें कोध बहुत जल्द आ जाता है। उनमें गम्भीरता लेशमात्र को भी नहीं होती। शगब पीना उनकी बहुत बुरी आदत है। सफाई की ओर वे कुछ भी ध्यान नहीं देती। मुंह हाथ छोड़कर और अगो को वे नही धोती। काम काज मे तिब्बती औरते बडी चतुर होती है। मध्यम श्रेणी की औरते रोजगार करना अपना पहला कर्तव्य समझती है। वे खेती करती है और पशु पालती हैं। दूध मे मक्खन निकालना उनका दैनिक काम है। पर. वडे घरा की औरते सुःव-चैत मे अपना समय विताती हैं। कपडा आदि मोना वहाँ पुरुप का काम समझा जाता है। नित में औरतें मर्दो से भी बढ कर स्वाधीन है। उनकी आज्ञाये पुरुषो के लिए शिरोधार्य है । दोष होने पर मनुष्य को अपनी पत्नी से माफी मांगनी पड़ती है। मो में एक ही स्त्री पतिव्रता होती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि तिब्बत मे बहु-पुन्प- विवाह की प्रथा जारी है। ये विवाह तीन प्रकार के होते है- (1) कई भाई मिलकर एक माथ एक ही औरत से विवाह कर लेते है । (2) दो या अधिक आदमी मिलकर एक ही स्त्री को अपनी पत्नी बना लेते है । (3) किसी मनुष्य की पत्नी अपने पति की मलाह से किसी दूसरे आदमी के माथ शादी कर लेती है। नतीजा यह है कि तिब्बत में स्त्री किमी की भी परवा नहीं करती। वैमनस्य होने पर वह एक को छोडकर दूसरा पनि चुन लेती है। पति भी जब चाहे पत्नी को अपने घर से निकाल सकता है। तिब्बत में बहुत कम विधवायें नजर आती है। पति के मर जाने पर स्त्री बिना छकु शोक प्रकट किये पुनर्विवाह कर लेती है। दिन बच्चे के शरीर पर मक्खन का लेप किया जाता है । जन्म के प्राय. तीन दिन बाद बच्चे का नामकरण-संस्कार होता है । उस दिन ज्योतिषी बुलवाया जाता है। वही शुभ मुहूर्त में बच्चे का नाम रखता है । जन्मदिन के अनुसार ही बच्चे का नाम रक्खा जाता है । अर्थात् यदि बच्चा रविवार को पैदा हुआ हुआ तो उसका नाम रक्खा जाता है 'न्यीमा' (सूर्य) परन्तु ऐसा नाम रखने से पीछे बहुत गड़बढ़ होने की सम्भावना रहती है। इसलिए प्रत्येक बच्चे का एक उपनाम भी अवश्य रखा जाता है। पुजारी बनने पर लोग एक अन्य नाम ग्रहण करते हैं । जिस दिन बच्चे का नामकरण होता है उस बड़ा उत्सव होता है। सम्बन्धियों को भोज दिया जाता है। बच्चे के माँ-बाप को दूर-दूर से सौगातें आती हैं। लोग उनके घर पर खुशी मनाने के लिए एकत्र होते हैं। आठवें वर्ष में लड़का पढ़ना लिखना शुरू करता है। उस दिन भी घर पर बड़ी जन्म घर