पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चीन में बौद्ध धर्म / 179 हुई । बौद्ध धर्म का प्रचार बढ़ता ही गया । सन् 467 में बे-वंश के एक राजकुमार के आदेश से भगवान् बुद्ध की एक विशाल मूर्ति निम्मित हुई। वह 50 फुट ऊँची थी। इसके बाद पाँच ही वर्ष में वह राजकुमार बौद्ध भिक्ष हो गया। ईसा की छठी शताब्दी के प्रारम्भ में चीन में तीन हजार से अधिक भारतीय बौद्ध थे । बौद्ध धर्म के उपासना-गृहों की संख्या भी 13 हजार हो गई थी। लिआंग का राज्य फिर बौद्ध धर्म के लिए अनुकूल हो गया । एक राजा ने बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर स्वयं कुछ काल तक धर्मोपदेश किया। उसका शासन-काल 502 से 550 ईमवी तक था। 26 वर्ष राज्य करने के बाद वह बौद्ध भिक्षु हो गया। बोधिधर्म-जिसकी चीन में बड़ी ख्याति है-मन् 526 में कैन्टन नगर पहुँचा। 518 ईसवी में संगयून नामक एक विद्वान् भारतवर्ष आया । वह तीन वर्ष के बाद लौटा । वह यहाँ से 175 ग्रन्थ ले गया। तंग-वंश का राजत्व काल 620-904 ईसवी तक था। उसके प्रथम नरेश के समय में तो बौद्ध धर्म के प्रचार में बाधा पड़ी। पर शीघ्र ही वह दूर हो गई। दूसरे नरेश के समय में ही हुएन-संग नामक प्रसिद्ध यात्री ने भारत-यात्रा की। आजी गताब्दी के आरम्भ में कनफ्यूशियस के चलाये हुए धर्म के अनुयायियों के प्रयत्न से 12,000 बौद्ध भिक्षु, बौद्ध धर्म छोड़ कर, सांसारिक कर्मों में लिप्त हो गये । सन् 760 ईसवी में सुसंग नामक राजा के राज्य प्राप्त करने पर बौद्ध धर्म का फिर प्रचार बढ़ा । सुसंग के बाद टे संग राज्यासन पर अधिष्ठित हुआ। वह तो बौद्ध धर्म का दृढ़ भक्त निकला । सम्राट हीनसंग ने 819 ईसवी में बुद्धदेव की एक अस्थि को खूब समारोह के साथ प्रतिष्ठित किया। पर 845 ईसवी में बौद्ध धर्म पर फिर आघात हुए । वुत्संग नरेश की आज्ञा से 4,600 बौद्ध-मठ नष्ट कर दिए गये और 40,000 छोटे छोटे मठ मिट्टी में मिला दिये गये। उनके लिए जो जमीन दी गई थी वह भी जब्त कर ली गई। पर बुत्संग के बाद फिर बौद्ध धर्म का काम शान्तिपूर्वक चलता रहा। सम्राट् ईत्सिंग बौद्ध धर्म का अनुयायी हुआ। वह अपने प्रासाद में बौद्ध भिक्षुओं को बुलाकर धर्मोपदेश सुना करता था। उसने संस्कृत का भी अध्ययन किया और संस्कृत में ही मन्त्रोच्चारण किया करता था। 1035 ईसवी में जिन-संग ने 50 विद्यार्थियों को संस्कृत का ज्ञानोपार्जन करने के लिए नियुक्त किया । मंगोल-सम्राट् कुबलीखाँ भी बौद्ध धर्म का पक्षपाती था। चीनी यात्री बराबर भारतवर्ष आया करते थे। सन् 965 ईसवी में एक बौद्ध विद्वान् ताड़पत्र के 50 ग्रन्थ भारतवर्ष से ले गया। उसके दूसरे ही साल 157 चीनी यात्री आये। तो यू नामक एक चीनी, फ़ाहियान का विवरण पढ़ कर, इतना उत्साहित हुआ कि वह स्वयं भारत-यात्रा के लिए निकल पा । मिंग-वंश का प्रभुत्व होने पर पहले तो बौद्ध धर्म का काम शान्तिपूर्वक होता रहा; पर 1450 ईसवी में यह कानून बनाया गया कि किसी भी बौद्ध-मठ के पास 6,000 वर्ग फुट से अधिक ज़मीन न रहे। 1530 ईसवी में एक बार फिर बौद्ध धर्म पर अत्याचार हुए । पर विशेष हानि नहीं हुई। इसके बाद ईसाई धर्म-प्रचारक चीन