पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१८४

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180/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली पहुँचे । उनके उद्योग से भी वहाँ विशेष परिवर्तन न हुआ। मंचूवंश के सम्राट् सभी मतों पर समान दृष्टि रखते थे। 1644 ईसवी में शुन ची नामक नरेश को उससे घृणा हो गई। उसने चारों ओर यह प्रचारित किया कि बौद्ध अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों से कपट करते हैं । उनके इस कपट-जाल से सब को बचना चाहिए । आज कल भी चीन में, बौद्ध धर्म के विषय में, कितने ही लोगों का ख़याल ऐसा ही है । पर अधिकांश मनुष्य अभी तक उसी धर्म के अनुयायी हैं। [जून, 1920 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित ।]