पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९६

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अमेरिका में कृषि-कार्य संसार परिवर्तनशील है। यहाँ कोई भी चीज़ सदा एक ही सी दशा में नही रहती। समयानुसार सबमें परिवर्तन होता है। जिस देश या जिस समाज के लोग समय की स्वाभाविक गति पर ध्यान नही देते, उन समाज का अधःपतन अवश्य ही होता है । भारतवर्ष कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की भूमि में जितनी उर्वराशक्ति है उतनी शक्ति बहुत ही कम देशों की भूमि में होगी। कृषि-कार्य के योग्य जितनी भूमि यहाँ है उतनी शायद ही और किसी देश में हो। फिर भी हमारे देश के किसानों को भर-पेट भोजन नहीं मिलता। दूसरे देशो के किसान सर्वथा सुखी और भारत के प्राय: सर्वथा ही दुखी हैं। अच्छा, इस अन्तर का कारण क्या? यह तो कह ही नही सकते कि यहाँ के किसान परिश्रमी नहीं, क्योंकि उन्हें बारह-बारह घण्टे काम करते हम प्रत्यक्ष देखते है । भारतवर्ष में कृषकों की दुरवस्था और निर्धनता के कई कारण हैं । एक तो यहाँ किसानों में शिक्षा का अभाव है । दूसरे यहाँ की गवर्नमेंट ने देश के कुछ अंश को छोड़कर अन्यत्र सब कही भूमि को अपने अधिकार में कर रक्खा है। वही उसकी मालिक बनी बैठी है । अतएव उसने भूमि के लगान और मालगुजारी के सम्बन्ध में जो कानून बनाये हैं वे बहुत ही कड़े है। फिर जहाँ कही तअल्लुकेदारियाँ है वहां किसानो के सुभीते का कम, तअल्लुकेदारो के सुभीते का अधिक ख़याल रक्खा गया है । यही सब कारण हैं जो किसानों को पनपने नही देते । जितने सुशिक्षित और सभ्य देश है वे वैज्ञानिक ढंग से कृषि करते हैं। फल यह हुआ है कि वे मालामाल हो रहे हैं। पर भारत में शिक्षा के अभाव अथवा कमी तथा निर्धनता के कारण इस प्रकार की नवाविष्कृत खेती हो ही नहीं सकती। हो, जो लोग पढ़े-लिखे और साधन-सम्पन्न हैं, वे यदि चाहें तो पश्चिमी देशों की खेती करके बहुत लाभ उठा सकते हैं । परन्तु खेद है, उनका भी झुकाव इस तरफ़ नहीं। इसे ईश्वरी कोप ही कहना चाहिये। जब तक देश की यह दशा रहेगी-जब तक शिक्षित जन-समुदाय कृषि-कार्य की ओर ध्यान न देगा और जब तक अभिनव आविष्कारों से काम न लिया जायगा तब तक कृषिकारों की दरिद्रता दूर न होगी । देश को समृद्धिशाली करने के लिये वैज्ञानिक प्रणाली से कृषि करने की बड़ी ही आवश्यकता है । इस समय भारत की जैसी अवस्था है, कोई 300 वर्ष पहले संयुक्त देश (अमेरिका) की भी ठीक वैसी ही, किम्बहुना उससे भी बुरी दशा थी। नजिनिया इस समय उस देश का एक प्रधान और विशेष समृद्ध प्रान्त गिना जाता है। परन्तु 1607 ईसवी में कप्तान जान स्मिथ नाम के एक आदमी ने वहाँ के कृषकों को नितांत हीनावस्था में देखा था। उस समय वहाँ एक मामूली हल से जमीन जोती जाती थी। जमीन खोदने म.हि.10.4 1