लीग आफ़ नेशन्स का ख़र्च और भारत / 191 इटली स्पेन 18 भारत से अधिक खर्च न देना पड़ेगा । सो जो देश सर्वतन्त्र स्वतन्त्र है और जिनकी बलवत्ता का आतंक सारे संसार में छाया हुआ है उनके बराबर बैठने का झूठा गौरव प्राप्त करके भारत के कंगाल कृषकों का आठ लाख से भी अधिक रुपया स्विट्जरलैंड के एक नगर को भेज दिया जाता है। स्विट्जरलैंड में लीग की बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। उनमें लीग के कितने ही दफ्तर हैं । इन दफ्तरों में बहुत से अफ़सर और सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं । यह सवा करोड़ से भी अधिक रुपया प्रायः उन्हीं की जेबों में जाता है । पर इन दफ्तरों में यह अन्यान्य देशों के निवासी सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं। वहाँ गौरव की गुरुता से झुकी हुई पीठ वाले भारत के सिर्फ 3 मनुष्य काम करते हैं। कुछ बड़े-बड़े देशों के निवासी कर्म- चारियों की संख्या नीचे दी जाती है- देश कर्मचारियों की संख्या ग्रेट ब्रिटेन 221 फ्रांस 180 34 10 पोलैंड 12 बेलजियम आयरलैंड नेदरलैंड्स 15 स्विट्जरलैंड 210 जर्मनी 10 स्विट्जरलैंड के 210 कर्मचारी देखकर कहीं यह न समझ जाइयेगा कि ये लोग बड़ी-बड़ी तनख्वाहें पाते होंगे, नहीं इनमें से अधिकांश दफ़्तरी, चपरासी, जमादार, पोर्टर वगैरह ही हैं। कारण यह कि दफ्तर इन्हीं के देश में है । यहाँ चपरासी और कुली का काम करने के लिये ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस से अंगरेज़ और फरासीसी जाने वाले नहीं । इसी से वहीं वालों को ये सब पद दे डाले गये हैं। जो जर्मनी लीग के खर्च के लिये एक फूटी कौड़ी भी नहीं देता रहा है उसने भी लीग के दफ्तरों में अपने 10 कर्मचारी ढूंस दिये हैं। पर जो भारत 8 लाख से भी अधिक हर साल देता है उसके सिर्फ तीन ही कर्मचारी वहाँ प्रवेश कर पाये हैं । यह न समझियेगा कि फ्रेंच भाषा न जानने के कारण अधिक भारतवासी नहीं लिये गये । ढूंढ़ने से कोड़ियों भारतवासी ऐसे मिल सकते हैं जो अंगरेजी और फ्रेंच दोनों भाषायें बखूबी जानते हो । ['श्रीयुत श-' नाम से फरवरी, 1927 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'लेखांजलि' पुस्तक में संकलित ।] 13
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९५
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