पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२०६

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कुमारी एफ0 पी0 कॉब - इनका पूरा नाम फ्रान्सिस पावर कॉब है। ये आजन्म कुमारी हैं। इन्होने अपना विवाह नही किया । इनकी उम्र इस समय 80 वर्ष की है। विद्या, दया, सुशीलता और समाज- संशोधन में, इनके समान, इस समय, शायद ही कोई दूसरी स्त्री हो । बड़े-बड़े विद्वान्, विज्ञानी, अधिकारी और राजा-महाराजा तक इनका आदर करते हैं । कुमारी कॉब का जन्म आयरलैंड में, डब्लिन के पास, न्यूब्रिज नामक शहर मे, 1829 ईसवी में, हुआ। पहले ये अपने ही शहर की पाठशाला में पढ़ती रहीं। फिर इनके पिता ने इनको लन्दन भेज दिया। वहाँ ये 1833 ईसवी में आई और एक प्रसिद्ध पाठशाला में विद्याभ्यास करने लगीं। इनके पिता धनी थे। वे इनको लन्दन में कोई पाँच हजार रुपये साल पढ़ने के लिए देते थे। वहां अच्छी तरह पढ़-लिखकर कुमारी कांब अपने घर लौट गई । घर पर इन्होंने इतिहास, ग्रीक भाषा और प्राचीन काव्यो को बहुत मन लगाकर पढ़ा। इससे इनको बड़ा लाभ हुआ। अनेक विषयो का ज्ञान इनको हो गया और इनकी मानसिक शक्तियाँ भी बहुत बढ़ गईं। कुमारी कांब पहले-पहल धाम्मिक विषयों की ओर अधिक मन लगाती थी। कुछ दिनों में उनको यह संशय हुआ कि ईश्वर है अथवा नही । परन्तु पीछे से उनका यह संशय जाता रहा । वे एकेश्वर-वादिनी हो गई और अब तक वैसी ही है। जब इनके पिता का.देहान्त हुआ तब इनकी उम्र तीस वर्ष के ऊपर थी। पिता की सम्पत्ति से कोई दो हजार रुपये साल की प्राप्ति इनको थी । उसी पर अपना जीवन निर्वाह करके ये परोपकार में प्रवृत्त हुई। पहले-पहल इन्होने विलायत के उन स्कूलो की सहायना की जिनको 'रैगेड' स्कूल कहते हैं । उनमें ग़रीब आदमियों ही के लड़के पढ़ते हैं। कॉव ने इन स्कूलों में अनेक सुधार करके इनमें पढ़नेवाले लड़को को बहुत लाभ पहुंचाया। इसके अनन्तर उन्होंने वहाँ के अनाथालयों की ओर दृष्टि दी । जो लोग काम करने में असमर्थ थे वे भी अनाथालयो में रक्खे जाते थे और जो काम कर मकते थे वे भी रक्खे जाते थे। जो लोग काम कर सकते थे उनसे काम भी लिया जाता था। वहाँ के अनाथ स्त्री-पुरुष और लँगड़े-लूले मनुष्यो की बड़ी दुर्दशा होती थी। उस दुर्दशा को कुमारी कॉब ने दिन रात परिश्रम करके बहुत कुछ कम कर दिया। इस काम के लिए उन्होंने व्याख्यान देकर, पुस्तकें लिखकर, अख़बारों में लेख लिख कर और चन्दा करके रूपया इकट्ठा किया । उस रुपये से उन्होंने इन अनाथालयों की दशा बहुत कुछ सुधारी। ये काम करके कुमारी कॉब ने स्त्रियों की उन्नति के लिए प्रयत्न आरम्भ किया। पारलियामेंट में सभासद होनेवालों को जिस प्रकार पुरुष अपना मत देते हैं उसी प्रकार स्त्रियों को भी मत देने का अधिकार प्राप्त करने के लिए इन्होंने बहुत परिश्रम किया है।