पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२१८

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लेडी जेन ग्रे लेडी ग्रे बड़ी रूपवती, सुशीला और पुण्यात्मा थी। अगरेजी इतिहास में जितनी प्रसिद्ध प्रसिद्ध स्त्रियाँ हो गई हैं उनमें से यह भी एक है। यद्यपि यह महासद्गुणी और सीधी थी, तथापि अठारह ही वर्ष की उम्र में इसे प्राणदण्ड मिला। इसका सिर काट लिया गया। इसकी मृत्यु-वार्ता बडी ही हृदयद्रावक है । ईश्वर की माया कुछ समझ में नही आती। कभी कभी देखने में आता है कि गुणवान् और सदाचारी लोगों की अकाल ही में मृत्यु हो जाती है और महानिर्गुणी तथा दुराचारी लोग चिरकाल तक आनन्द से रहते हैं। परन्तु यह वात बहुत ठीक है कि महात्माओं ही पर अधिक संकट आते हैं; सुख का उपभोग भी वही औरो से अधिक करते है । चन्द्रमा को देखिए । वह कभी घटता है और कभी बढ़ता है। परन्तु तारे जैसे के तैसे बने रहते हैं। न वे घटें, न बढ़े। लेडी जेन ग्रे, इंगलैंड के राजा आठवें हेनरी की सबसे छोटी बहन की पोती थी। उसका वाप मफ़क का ड्यूक (सरदार) था। जेन ग्रे अपने बाप की सब से बड़ी लड़की थी। उसका जन्म, ब्राडगेन नामक स्थान में, 1537 ईसवी मे, हुआ । लड़कपन ही से जेन को पढ़ने-लिखने का बड़ा चाव था। उसके बाप ने उसके लिए एक शिक्षक नियत कर दिया था । वह शिक्षक उसका बहुत प्यार करता था । वह भी बड़े प्रेम से अपना पाठ पढ़ती थी। जेन ग्रे बहुत रूपवती थी। वह कभी झूठ नहीं बोलती थी। उसका स्वभाव बहुत नम्र था। राजा आठवें हेनरी की गनी कैथराइन जेन को बहुत चाहती थी । जेन के माता-पिता की आज्ञा से उसने उसे अपने महल में रख लिया था। वहाँ उसने जेन के शिक्षण का अच्छा प्रबन्ध कर दिया था। परन्तु राजा के महलो मे जेन के आने के कुछ ही दिनों पीछे रानी कैथराइन की मृत्यु हुई। इसलिए जेन को अपने माता-पिता के यहाँ लौट जाना पड़ा। उम समय माँ-बाप अपने बच्चों के साथ कभी कभी निर्दयता का व्यवहार किया करते थे। वे उनको धमकाते ही न थे; मारते भी थे, और अनेक प्रकार से तंग करते थे। जेन ग्रे के माता-पिता भी उसके माथ अच्छा व्यवहार न करते थे। उसे भी मार सहनी पड़ती थी। परन्तु जेन के शिक्षको का स्वभाव बहुत अच्छा था । वे कभी उसे दुर्वचन न कहते थे । उसको वे प्रेमपूर्वक पढ़ाते थे। इसीलिए जेन पढ़ने लिखने से बहुत प्रसन्न रहती थी। जब उसका पाठ समाप्त हो जाता और उसके शिक्षक चले जाते तब वह बहुत घबराती, क्योकि पढ़ने के मिवा और बातें उसे पसन्द न थी। लेडी जेन ग्रे अँगरेजी भापा बहुत अच्छी तरह जानती ही थी । उसके सिवा वह फ्रेच, लैटिन और ग्रीक भापायें भी समझ लेती थी, समम ही नहीं, किन्तु उनमें वह बात- चीत भी कर लेती थी और बिना किसी कठिनाई के लिख भी मकती थी। कशीदा और जरी का काम भी वह बहुत सुघर करती थी। गाने बजाने में तो वह अत्यन्त ही चतुर