228 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 'प्रकृति' (Nature) और 'धर्म की उपयोगिता' (Utility of Religion) इन दो विषयों पर भी उसने निबन्ध लिखे; पर वे उसकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुए। मिल के पिता ने मिल को किसी प्रकार की धर्म-शिक्षा नहीं दी; क्योकि उसका विश्वास किसी धर्म पर न था । पर उसने सब धर्मों और धाम्मिक सम्प्रदायो के तत्त्व मिल को अच्छी तरह समझा दिये थे। लड़कपन में इस तरह का संस्कार होने के कारण मिल के धाम्मिक विचार अनोखे थे । उनको उसने 'धर्म की उपयोगिता' में बडी ही योग्यता से प्रकट किया है। उसकी स्त्री विदुषी थी। तत्त्व-विद्या में वह भी खूब प्रवीण थी । पुस्तक- रचना में भी उसे अच्छा अभ्यास था। 'स्वाधीनता' और 'स्त्रियो की पराधीनता' को मिल ने उसी की सहायता से लिखा है। और भी कई पुस्तकें लिखने में उसने मिल की सहायता की थी। अपने आत्म-चरित में मिल ने उसकी अत्यधिक प्रशंसा की है। 'स्वाधीनता' को उसने अपनी स्त्री ही को समर्पण किया है। उसका समर्पण भी बहुत ही विलक्षण है। उसमें उसने अपनी स्त्री की प्रशंसा की पराकाष्ठा कर दी है। मिल बड़ा उदार पुरुष था। मत्ग के खोजने में वह गदैव तत्पर रहता था। जिस बात से अधिक आदमियों का हित हो उमी को वह सब से अधिक सुखदायक ममझता था । इस सिद्धान्त को उसने अपने 'उपयोगिता-तत्त्व' मे बहुत अच्छी तरह प्रमाणित किया है। नई और पुगनी चाल की जरा भी परवा न करके जिमे वह अधिक युक्तियुक्त समझता था, उमी को वह मानता था । वह सुधारक था; परन्तु उच्छृखल और अविवेकी न था। उसने अनेक विषयों पर ग्रन्थ लिखे। जो लोग बिना ममझे-बूझे पुरानी बातों को वेद- वाक्य मानते थे, उनके अनुचित विश्वासों को उमने विचलित कर दिया; उनकी मद्- सद्विचार शक्ति को उसने जागृत कर दिया; उनकी विवेचना-रूपी तलवार पर जो मोरचा लग गया था, उसे उसने जड़ से उड़ा दिया। मिल के ग्रन्थों में स्वाधीनता, उपयोगिता तत्त्व, न्यायशास्त्र और स्त्रियों की पराधीनता-इन चार ग्रन्यों का बड़ा आदर है। इन पुस्तकों में मिल ने जिन विचारों से-जिन दलीलो से-काम लिया है, वे बहुत प्रबल और अम्खण्डनीय हैं। यद्यपि कई विद्वानों ने मिल की विचार-परम्परा का खण्डन किया है, तथापि वे कृतकार्य नही हुए- उनको कामयाबी नहीं हुई। ये ग्रन्थ सब कहीं प्रीतिपूर्वक पढ़े जाते हैं। स्वाधीनता में मिल ने जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है वे बहुत ही दृढ प्रमाणों के आधार पर स्थित हैं । यह बात इस पुस्तक को पढ़ने से अच्छी तरह मालूम हो जाती है। इस पुस्तक मे पाँच अध्याय है। उनकी विषय-योजना इस प्रकार है- पहला अध्याय-प्रस्तावना। दूसरा अध्याय-विचार और विवेचना की स्वाधीनता । तीमरा अध्याय-व्यक्ति-विशेषता भी मुख का साधन है। चौथा अध्याय-व्यक्ति पर ममाज के अधिकार की सीमा । पाँचवाँ अध्याय-प्रयोग। मिल माहब का है कि व्यक्ति के बिना या गवर्नमेंट का काम नहीं चल सकता और समाज या गवर्नमेंट के बिना व्यक्ति का काम नहीं चल सकता।
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२३२
दिखावट