पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२४७

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हर्बर्ट स्पेन्सर | 243 रूप में निकालना शुरू किया । परन्तु फिर भी ग्राहकों की कमी रही । उसे बराबर घाटा होता गया। जब वह इस पुस्तक की पहली तीन जिल्दें निकाल चुका तब हिसाब करने पर उसे मालूम हुआ कि कोई 15 वर्ष में उसे अठारह हज़ार रुपये का घाटा रहा ! स्पेन्सर ही ऐसा था जो इतना घाटा उठा सका। अब उसने इगदा किया कि इस पुस्तक की अगली जिल्दों का प्रकाशित होना बन्द कर दिया जाय । परन्तु मौभाग्यवश बन्द करने का समय नहीं आया । जैसे-जैसे उसकी प्रमिद्धि होती गई वैसे ही वैसे उसकी किताबों की बिक्री भी बढ़ती गई। परन्तु जो घाटा स्पेन्मर ने उठाया था उसे पूरा होने में 24 वर्ष लगे ! इसके बाद उसे यथेच्छ आमदनी होने लगी और फिर कभी उसे अपनी आर्थिक अवस्था के सम्बन्ध में शिकायत करने का मौक़ा नही मिला । उसने अपनी किमी-किसी किताब के छपाने और प्रकाशित करने में, बिक्री से होने वाली आमदनी का कुछ भी खयाल न करके, हजारों रुपये खर्च कर दिये । समाजशास्त्र-मम्बन्धी अकेली एक पुस्तक के छपाने में उमने कोई 44 हज़ार रुपये बरबाद कर दिये ! इम बहुत बड़ी रकम के खर्च करने के विषय में उराने बमोद के तौर पर लिखा है कि यदि मेरी उम्र 100 वर्ष से भी अधिक हो तो भी मुझे इम रुपये के वसूल होने की कोई आशा नहीं। हर्बर्ट स्पेन्सर ने और भी कितनी ही उत्तमोत्तम पुस्तकें लिखी हैं। उनमें से दो- चार के नाम हम नीचे देते है- 1 फैक्ट्स एण्ड कामेंट्स (Facts and Comments) यथार्थता और टीका । 2 एसेज़ (Essays) निबन्ध, 3 जिल्द । 3 वेरियस फेगमेंट्स (Various Fragments) बहुत सी फुटकर बातें। 4 दि स्टडी आफ़ सोशियालजी (The Study of Sociology) समाजशास्त्र का अध्ययन । 5 एजुकेशन (Education) शिक्षा । इनके सिवा उसने और भी कितनी ही छोटी-बड़ी किताबें लिखी हैं । स्पेन्सर की किताबों में 'शिक्षा' बहुत ही उपयोगी किताब है। योरप, अमेरिका और एशिया सब कही इसकी बेहद कदर हुई है। कोई बीस-बाईस भाषाओ में इसका अनुवाद हुआ है । चीनी, जापानी, अरबी यहाँ तक कि संस्कृत तक में इसका रूपातर किया गया है । आज तक इसकी लाखों कापियाँ छपकर बिक गई हैं । इसका हिन्दी अनुवाद प्रयाग के इंडियन प्रेस ने प्रकाशित किया है। यह पुस्तक सर्वमान्य है । शिक्षा के विषय में यह अद्वितीय है। विद्वानों की ऐसी ही राय है। इसमें शिक्षा की जैसी मीमांसा की गई है वैसी आज तक किसी ने नहीं की। शारीरिक, मानसिक और नैतिक सब प्रकार की शिक्षाओं की, बड़ी ही योग्यता से, इसमें मीमांसा हुई है । स्पेन्सर ने विज्ञान- विद्या ही को सबसे अधिक उपयोगी और सबसे अधिक मूल्यवान् शिक्षा ठहराया है । परन्तु अफ़सोस, हिन्दुस्तान में इसी शिक्षा की सबसे अधिक नाक़दरी है। 1882 ईसवी में स्पेन्सर ने अमेरिका का प्रवास किया । जहाँ-जहाँ वह प्रकट रूप से गया वहाँ-वहाँ उसका बड़ा आदर हुआ। राजकीय और नैतिक शास्त्रों के उत्कर्ष के लिए फ्रान्स में एक प्रसिद्ध विद्या-पीठ है। उसकी एक शाखा तत्वज्ञान से सम्बन्ध रखती है।