संदर्भ अफ़गानिस्तान ॥ अमीर हबीबल्लाखाँ अफ़ग़ानिस्तान मे 5 मूबे हैं-हिरात, कन्धार, काबुल, अफ़ग़ानी तुरकिस्तान और बदखशां। क्षेत्रफल 3,00,000 वर्गमील है। आबादी कोई 60,00,000 है। उमकी हद रूस से मिली हुई है। इसीलिए अंगरेजी गवर्नमेंट अमीर अफ़ग़ानिस्तान की इतनी खातिर तवाजो करती है। यदि अमीर साहव रूस से मिल जाये तो रूस का हिन्दुस्तान की मीमा पर पहुंचना आसान बात है। 1809 में अंगरेजों को सन्देह हुआ कि रूम इम देश पर चढ़ाई करना चाहता है। इसलिए अफगानिस्तान के तत्कालीन अमीर शाह शुजा से मन्धि की गई। पर 1826 में जब दोस्तमहम्मद काबुल का अमीर बन बैठा तव उमने रूम से मित्र-भाव वढाया । मन्धि उमने तोड़ दी। इसलिए अंगरेजों ने 1838 में अफ़गानिस्तान पर चढ़ाई की और काबुल और कन्धार को अपने कब्जे में कर लिया। शाह शुजा को फिर काबुल का मिहामन मिला। परन्तु 1841 में दोस्तमुहम्मद ने शाह शुजा से काबुल फिर छीन लिया, और 1840-1842 में अंगरेज़ों पर बड़ी भारी विपत्ति आई। बहुत से अंगरेज अफ़ग़ानों के हाथ से मारे गये। इसके बाद दोस्तमुहम्मद ने फिर अंगरेजों से सुलह कर ली और अँगरेज़ उसे बारह लाख रूपये माल देने लगे। अँगरेजो का एक एलची भी काबुल में रहने लगा। दोस्तमुहम्मद ने अपने बेटे शेरअली को अपना उत्तराधिकारी बनाया । इसका प्रतिवाद उमके दूसरे बेटे मुहम्मद अफजलखां ने किया । इस कारण 1863 के बीच इन दोनों में लडाइयाँ होती रहीं। शेरअली की जीत हुई । काबुल की गद्दी पर बैठने के बाद अंगरेजों ने उसकी भी मदद रुपये और हथियारो से की। उसने अपने बेटे अबदुल्ला जान को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहा। पर इस बात को अंगरेजों ने नामंजूर किया और याकबखां का पक्ष लिया। इस पर शेरअली ने याकूब को कैद कर लिया और अंगरेजों से मुखालिफ़त शुरू की। शेरअली ने रूस को अपना दोस्त बनाया। इस कारण, 1878-79 में अंगरेजों ने काबुल पर चढाई की । शेरअली भागा । अंगरेजों ने कन्धार पर दखल कर लिया । याकूबला काबुल का अमीर बनाया गया। उसके अमीर होने पर अंगरेजों ने अपने कई अफ़सर काबुल भेजे और याकूबख से एक सन्धि-पत्र लिवाना चाहा। पर अफगानों ने अँगरेज़ अफसरों और उनके माथियों को काट डाला । इमलिए 1880 ईसवी में तीसरी दफ़े अफ़गानिस्तान से लड़ाई हुई । याकूबलो की हार हुई । वह भाग गया। इस दरमियान में अफ़जलखां के बेटे अब्दुर्रहमान ने रूस की मदद से अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ प्रस्थान किया । अंगरेजों ने इस बात को पसन्द किया। अब्दुर्रहमान काबुल पहुंचा । अंगरेजो ने उसके अमीर बनने में कोई बाधा न डाली। अतएव वह अमीर हो
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