मुग्धामलाचार्य | 269 विशेष अर्थ निकलता है कि जब सभी अबलाओं को पति का वियोग दुःसह हो जाता तब चन्द्र-पति के अस्त हो जाने पर कुमुदिनी-पत्नी को उसका वियोग दु:मह होना ही चाहिए। आचार्य मुग्धानल ने इसका कैसा अनुवाद किया है सो अब मुनिए- The moon has gone; the lilies on the lake, Whose beauty lingers in the memory, No more delight my gaze : they droop and fade; Deep is their sorrow for their absent lord. संस्कृत शब्द 'शशिन्' कहने से जो भाव हृदय में उदित होता है वह मुग्धानल के 'Moon' (चन्द्र) से कभी नहीं होता। खैर, इमे म अँगरेजी भाषा की न्यूनता समझे लेते है । (they droop and fade) अर्थात् वे मुरझा जाती है-यह आपने अपनी तरफ़ से जोड़ दिया है । र, यह भी क्षनायोग्य निरंकुशता है. क्योंकि मुरझाने, कुम्हलाने या झुक जाने का भाव ध्वनि से निकल सकता है। पर आचार्य ने चौथी लाइन में जो यह लिखा है कि-"अपने अनुपस्थित (गैरहाजिर) पति के कारण उन्हें बहुत बड़ा दुःख है"-मो किसी तरह क्षमायोग्य नहीं । पहले तो 'प्रवाम' का पुग-पुरा अर्थ absent' (अनुपस्थित-गैरहाजिर) से नहीं निकल सकता, क्योंकि 'अनुपस्थिति' मे थोड़ी देर का भी अर्थ निकल सकता है, पर 'प्रवास' से नहीं। फिर यह कहना कि कुमुदिनियो का पति घर पर नहीं है, इसमे उन्हें महादुःख हो रहा है, मानो कालिदाम के भावार्थ का सत्यानाम करना है । कवि तो प्रत्यक्ष तौर पर कुमुदिनियों के दुख की बात ही नहीं कहता। वह तो कहता है कि जितनी स्त्रियाँ-नहीं अवलाये है सभी को पति का वियोग बलता है । जब सभी का यह हाल है तब कुमुदिनियो को दुख होना ही चाहिए । वे स्त्री-जाति से बाहर नही । यहाँ पर अबलाजन की बात साधारण है; कुमुदिनियो की विशेष । कवि ने साधारण से विशेष की उद्भावना की है। विशेष से माधारण वी नही । सो आचार्य मुग्धानल ने सभी उलट-पुलट कर डाला । 'शकुन्तला' में एक पद्य सर्वोत्तम समझा जाता है । वह उस समय का है जिस समय पति के घर जाने के लिए शकुन्तला कण्व से विदा होती है । इस श्लोक का उत्तरार्द्ध है- वैक्लव्यं मम ताक्दीदृशमिदं स्नेहादरण्यौकमः पीड्यन्ते गृहिणः कथं न तनयाविश्लेषदुःखेनवैः । अर्थात्- मोसे बनबासीन जो इतौ सतावत मोह । तो गेही कैसे सहें दुहिता प्रथम विछोह ।। यह पच पदजीवी है । इसके 'गृहिणः' पद सारे श्लोक का जीव है । इसी से राजा लक्ष्मणसिंह ने इसे अपने अनुवाद से नहीं जाने दिया। देखिए आपके दोहे में 'गेही' विद्यमान है । पर भारतवर्ष के पण्डितों पर सूक्ष्मदर्शी न होने का वृथा कलंक लगाने वाले मुग्धानल महोदय को यह बात नहीं सूझी। आपने 'गृहिणः' पद की योग्यता को 1
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