274/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली पर और भी कितने ही छोटे-मोटे लेख लिखे । वे सब प्रकाशित हो चुके हैं । इसके बाद आपका ध्यान भारतवर्ष के प्राचीन शिलालेखों, ताम्रपत्रों और दान- पत्रो की ओर गया। इधर भी आपने अच्छा काम किया । कितनी ही नई-नई बातें मालूम की। कालिदास और माघ के स्थिति-समय के विषय में आपने कई खोजें की। चेदि-सवत् के आरम्भ का भी आपने निश्चय किया । प्राचीन चोल और पाण्ड्य देशों के इतिहाम से सम्बन्ध रखने वाले कई महत्त्वपूर्ण लेख भी आपने लिखे। एक काम आपने बहुत बड़ा किया। जितने प्राचीन शिलालेख आदि इस देश में तब तक निकले और छापे गये थे उन सबकी एक तालिका बनाकर आपने प्रकाशित कर दी। कोई 42 वर्ष हुए जब डाक्टर कोलहान पहले-पहल इस देश में आये थे। बहुत वर्षों तक पूने में अध्यापना करके आप जर्मनी लौट गये। वहाँ आपको गाटिजन के विश्वविद्यालय में संस्कृताध्यापक की जगह मिली। स्वदेश पहुँचकर भी आप ग्रन्थ- सम्पादन करने और नई-नई बातें खोजने में बराबर लगे रहे। इस देश से जर्मनी लोट जाने पर डाक्टर बूलर ने एक ऐसी पुस्तक निकालना आरम्भ किया जिसमें आर्यों से सम्बन्ध रखने वाली बातों के तत्त्वानुसन्धान-विषयक लेख निकलते थे। जब तक डाक्टर बूलर रहे, इसका मम्पादन करते रहे। उनके मरने के बाद डाक्टर कीलहान ही ने उसे चलाया । डाक्टर कीलहान और बूलर ने इस पुस्तक का सम्पादन ऐमी योग्यता से किया, और संस्कृताध्ययन तथा पूर्वी पुरातत्त्व-विषयों का इतना प्रचार किया कि नये-नये जर्मन विद्वान् पैदा हो गये और इस पुस्तक में बड़े-बड़े महत्त्वपूर्ण लेख निकलने लगे। दुःज की बात है कि ऐसा विद्वान् मंमार से उठ गया। डाक्टर माहब अनी बहुत बूढ़े न थे। आपकी उम्र कोई 65 वर्ष की रही होगी। खूब तगड़े थे। लिखने-पढ़ने में जवानो की तरह काम करते थे। समय आ जाने पर मृत्यु न उम्र देखती है, न दशा देखती है, न और ही किसी बात को देखती है। उसका शामन अनुल्लंघनीय है - [दिसम्बर, 1908 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'विदेशी विद्वान्' में संकलित।
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