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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२७९

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यासंदर्भ अबोसीनिया॥ हबशीराज मैन्यलिक . लाल ममुद्र से मिला हुआ, उसके पश्चिम और मिश्र के दक्षिण, एक स्वतन्त्र देश है । उसका नाम है अबीसीनिया । अगर जरा और शुद्ध करके लिखें तो उसे हबसीनिया कहना चाहिए । अरबी शब्द हवश से हवमीनिया बना है। हबशी भी उसी में है। यह मभी जानते हैं कि हवश के रहने वाले हबशी कहलाते हैं । अवीसीनिया बहुत प्राचीन राज्य है। उमका पुराना नाम यथिओपिया है। उसका क्षेत्रफल कोई 2,00,000 वर्गमील और आबादी कोई 40,00,000 है। हवश एक पहाड़ी देश है। उममें कई ऊंचे ऊँचे पहाड़ हैं। नदियाँ भी अनेक हैं। उसे मम-शीतोष्ण देश कहना चाहिए। वहाँ अफरीका के और भागों की मी गरमी नहीं होती और न जाड़ा ही बहुत पड़ता है। वहाँ प्राय: सब प्रकार के वनस्पति होत हैं । खेती भी खूब होती है। कहवा बेशुमार पैदा होता है, गन्ना, अंगूर, अनार, नारंगी, नीबू, खजूर आदि की भी कमी नहीं है। हाथी और गैडे अनन्त हैं। वहाँ के गैंडे के दो मीग होते है, एक नहीं । नदियों में मगर, घड़ियाल और जल-तुरंग भरे पड़े हैं। शेर और चीते भी हजारों हैं । शहद वहाँ इतना पैदा होता है कि वह हबशियों का मवसे बड़ा खाद्य है। हवश के हवशी क्रिश्चियन हैं; परन्तु विशुद्ध क्रिश्चियन धर्म में ऐसे अनेक ढोंग भर गये हैं जिनका क्रिश्चियन धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं । खास ख़ाम मौके पर ये लोग हाल के मारे गये पशुओं का गरम गरम मांस कच्चा ही खा जाते हैं । पारकिन्म और ब्रूम नाम के दो अँगरेज़ इस बात की गवाही देते हैं। हबश खूब पुराना देश है। इसका पता नही चलता कि कब से वहाँ बादशाहत कायम है। वहाँ के वर्तमान गजा अपने को बादशाह नहीं कहने, किन्तु, शाहंशाह (राज- राजेश्वर) कहते हैं। प्राचीन काल में हबश और मिश्र की राज-सत्ता एक ही पुरुष के हाथ में रहती थी: इमीलिए और हबशियों की अपेक्षा वहाँ के हबशी सुधर गये है । वश में तीन प्रधान मूबे हैं-~-टाइगरी, अमहरा और शोवा। 1863 ईसवी में हबश के शाहंशाह थिओडर ने महारानी विक्टोरिया को एक पत्र भेजा; परन्तु उसका उत्तर न आया। इस पर आप बेहद नाराज हुए । अंगरेजी कान्सल को आपने कैद कर लिया। अतएव अंगरेज़ महाराज को हबश पर चढ़ाई करनी पड़ी । सर हाबर्ट नेपियर सेनापति हुए। 400 मील पहाड़ी रास्ता तै करके 32,000 सेनासहित आप हबश में दाखिल हुए, तब शाहंशाह को अपनी शाहंशाही का घमण्ड कम करना पड़ा। आपने 500 भेड़ियाँ और 1000 गायें देकर सुलह करनी चाही। यह बात अंगरेजी सेनापति ने स्वीकार भी कर ली; परन्तु यह सन्धि-स्वीकार-वार्ता हबशराज की समझ में ठीक ठीक न आई। इसलिए आपने आत्महत्या कर ली। अंगरेजी सेना हबश का विध्वंस करके और कैदियों को छुड़ाकर वापस आई। परन्तु उस देश पर दखल न कर लेने की उसने उदारता दिखाई। इस भूल के लिए कोई कोई धुरन्धर राजनीतिज्ञ अंगरेज-राज को अपराधी ठहराते हैं।