पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२८

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24 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली हैं जिनसे यह मालूम होता है कि प्राचीन मेक्सिकोवासी बौद्ध धर्मावलम्बी थे और गौतम बुद्ध की पूजा करते थे। चीन के इतिहास-लेखक मातवानलिन कहते हैं कि-"कफिन देश (काबुल) का निवासी हुईशेन (इयसेन) नामक एक बौद्ध संन्यासी 499 ई० में फुसांग देश से चीन में आया था। उसने चीन के तत्कालीन सम्राट युगयुआन को बहुत कुछ नज़र भी दी थी। सम्राट ने युकी नाम के मन्त्री को हुईशेन का भ्रमण वृत्तान्त लिख लेने की आज्ञा दी थी।" चीनी भाषा में लिखा हुआ हुईशेन भ्रमण वृत्तान्त अब तक मौजूद है। उसमें 'हुईशेन ने कहा है कि सम्राट तामिंग के राजत्वकाल (458 ई०) में काबुल बौद्ध का केन्द्र-स्थान था। उसके पहले वहाँ के पाँच बौद्ध भिक्षु फुसाँग देश को गये थे और वहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया था । फुसांग देश चीन से कोई 2000 ली अर्थात् 65000 मील दूर है। वह 10000 ली अर्थात् 3250 मील चौड़ा है और चारों ओर समुद्र से घिरा हुआ है । फुसाँग एक प्रकार का वृक्ष होता है । वह वृक्ष पूर्वोक्त फसाँग देश में बड़ी कसरत से होता है। हुईशेन ने उसी वृक्ष के नाम पर पूर्वोक्न देश का नाम फसांग देश रक्खा था । मेक्सिको वाले आज-कल फुसाँग वृक्ष को आगेवी कहते हैं। उपर्युक्त चीन ग्रन्थ में फुसाँग वृक्ष का जो वर्णन लिखा है वह आगेवी से बिलकुल मिलता है। इसलिए यह स्पष्ट है कि फसाँग देश और मेक्सिको देश एक ही हैं और काबुली बौद्धों ने वहाँ जाकर बौद्ध धर्म का अवश्य प्रचार किया था । कहते है कि फसाँग वृक्ष की छाल में एक प्रकार का जन्तु होता है । यह रेशम की तरह होता है। हुईशेन ने अन्यान्य बहुमूल्य वस्तुओ के साथ इसे भी चीन सम्राट को भेट किया था। हुईशेन ने एक जगह कहा है कि फमांग प्रदेश में चांदी, सोना, लोहा, ताँबा बहुत होता है । कोलम्बस ने भी इस बात को प्रत्यक्ष देखा था। वह नो अपने साथ बहुत सा सोना चाँदी स्पेन को लाया भी था। फुसांग देश और मेक्सिको एक ही हैं, उसका एक और भी प्रमाण सुनिए । मेक्सिको वाले कहते हैं कि प्राचीनकाल में एक श्वेतकाय दीर्घ परिच्छदधारी महापुरुष मेक्सिको में आया था। वह लोगों को नीति और धर्म की शिक्षा दिया करता था। उसका नाम हुईशीवेकोको था। मालूम होता है कि यह नाम 'हुईशेन भिक्षु' का अपभ्रंश है । मेक्सिको के एक और महापुरुष के सम्बन्ध में भी ऐसी ही किंवदन्ती है। इन लोगों की शिक्षा और धर्म-प्रचार का जैसा वर्णन पाया जाता है उससे मालूम होता है कि ये लोग बौद्ध थे। काबुल, चीन और जापान के वाकै संन्यासी देश देशान्तरों में सदा धर्म-प्रचार करते फिरते थे। पहले वे निकट के द्वीपों में प्रचार करने जाते थे। वहाँ से आगे के अन्य द्वीपो का संवाद पाकर वे वहाँ भी जाया करते थे । यों ही धीरे धीरे आगे बढ़ते बढ़ते वे बड़ी दूर दूर के द्वीपों और देशों में पहुँच जाते थे । और वहाँ अपने धर्म का प्रचार करते थे। मालूम होता है कि इसी तरह प्रचार करते करते वे अमेरिका पहुँचे थे। अमेरिका का अलास्का प्रदेश चीन के निकट है। मालूम होता है कि इसी रास्ते बौद्ध लोग वहां गये थे। क्योंकि अलास्का से