सर विलियम वेटरबर्न-1/285 इस विषय अहमदनगर के निकट एक गांव में इसका तजरिबा करने का प्रयत्न भी किया। यह प्रस्ताव सबको रुचिकर हुआ । पर गवर्नमेंट ने इसे अस्वीकार किया। दूसरा प्रस्ताव भी मब लोगो को पसन्द आया । पूने में एक सर्वसाधारण की सभा कलक्टर की अध्यक्षता में हुई, कृषि बैंक स्थापना करने के प्रस्ताव पास हुए; और एक कमेटी नियत की गई । कमेटी ने अपने प्रस्तावों को सर जेम्स फरगुसन के सामने पेश किया। गवर्नर साहब ने उन प्रस्तावों को पसन्द किया और भारतवर्ष की गवर्नमेंट को भेजने की प्रतिज्ञा की। लार्ड रिपन उस समय बड़े लाट थे। उन्होंने कमेटी के कथन को सहर्ष स्वीकार किया और इस बात पर राजी हो गये कि कुछ गाँवों में एक कमीशन द्वारा प्रजा का क़र्ज़ अदा किया जाय, सरकार इस निमित्त 63 लाख रुपया पेशगी प्रजा को दे; और जो कृषि-बैक खोला जाय उसका रुपया उसी तरह सरकारी अफसरो द्वारा वसूल किया जाय जैसे सरकारी रुपया वमूल किया जाता है। भारत-गवर्नमेंट के आग्रह करने पर वम्बई-गवर्नमेंट ने इम संकल्प जो कार्य में परिणत करने का भार अपने जिम्मे ले लिया और 31 मई, 1884 ईसवी को वाइसराय और कौंसल के मेम्बरों के हस्ताक्षरों से विल.यत को एक पत्र भेजा गया। परन्तु सेक्रेटरी आव स्टेट के दफ्तर से कुछ हीला- हवाला होने के बाद 1887 ईसवी में पारलियामेट ने इस बात की इजाजत देने से माफ़ इनकार कर दिया। तृतीय प्रस्ताव का यह अभिप्राय था कि जब तक पंचायतों से फ़ैसला हो सके तब तक कोई मुक़द्दमा अदालतों में न जाय । पंचायत की प्रणाली भारतवासियों को बहुत प्रिय है । वे पंच को ईश्वर के तुल्य समझते हैं । इस विचार को कार्यक्षेत्र मे लाने के लिए पूने के टाउन हाल में एक बड़ी भारी सभा की गई। फिर एक कमेटी बनी । उसमें सदरआला, पेशन पाये हुए महकमे माल के अफ़सर, तीन वकील, दो खजानची और एक मंत्री नियत हुए । इस कमेटी के कानून का एक मसविदा तैयार किया । उसका मंशा यह था कि हर एक मुक़द्दमा पहले जातीय अदालतों के सामने आवे। और यदि कोई उनके फैसले से असन्तुष्ट हो तो दौरे पर रहने वाले सदरआला की अदालत में अपील करे। इस प्रस्ताव को बम्बई की गवर्नमेंट ही ने अस्वीकृत किया। सर विलियम शिक्षा के, विशेष कर स्त्री-शिक्षा के, बड़े पक्षपाती हैं। आपका सम्बन्ध सिन्ध से कुछ दिनों तक था। उसके नाते कराची में 1880 में, वेडरबन हिन्दू- कन्या पाठशाला खोली गई थी। 1884 ईसवी में आपने श्रीमान् महादेव गोविन्द रानाडे की सहायता से पूने में भी कन्याओं को उच्च शिक्षा देने के लिए एक पाठशाला स्थापित की। आपने अपने भाई सर डेविड की यादगार में 10,000 रुपये देकर इस शाला के लिए छात्रवृत्तियां नियत की। कांग्रेस के जन्मदाताओं में से आप भी एक हैं। मिस्टर ा म और मिस्टर बैनर्जी के साथ आपने भारत की राष्ट्रीय सभा का प्रथम अधिवेशन, बम्बई में, किया । लार्ड डफ़- रिन उस समा बड़े लाट थे। उनसे प्रार्थना की गई कि लार्ड री को, जो बम्बई के गवर्नर थे, आज्ञा दी जाय कि वे प्रथम राष्ट्रीय सभा कामभापतित्व स्वीकार कर लें। परन्तु, यद्यपि राष्ट्रीय सभा से लार्ड डफरिन ने सहानुभूति प्रकट की, तथापि यह आज्ञा देना उन्होंने उचित
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