पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२९८

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294 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली अलवरूनी एक मुसलमान साहित्य-प्रेमी के साथ अकसर तर्क-वितर्क किया करता था। उसका विचार था कि मूल संस्कृत-ग्रन्थ अध्ययन करने के लिए परिश्रम करना व्यर्थ है; अरबी-साहित्य में जो अनुवाद मौजूद है वही यथेष्ट हैं । परन्तु अलबरूनी का मत उसके विपरीत था। धीरे-धीरे दोनों में वाद-विवाद बढ़ गया । अतएव अलबरूनी ने अपने मत का महत्त्व स्थापन करने के लिए मूल संस्कृत-शास्त्रो के प्रमाण उद्धृत करके 'इंडिका' की रचना प्रारम्भ की। 'इंडिका' के पढ़ने से मालूम होता है कि उसकी रचना के पहले अलबरूनी ने कई संस्कृत-ग्रन्थों का अध्ययन किया था । उनमें से सांख्यदर्शन, योगदर्शन, गीता, विष्णुपुराण, मत्स्यपुराण, वायुपुराण, आदित्यपुराण, पुलिशसिद्धान्त, ब्रह्मसिद्धान्त, बृहत्संहिता, पञ्च- मिद्धान्तिका, करणमार, करणतिलक, भुवनकोश और चरक विशेष उल्लेख योग्य है । इसके मिवा रामायण, महाभारत, मानवधर्मशास्त्र, छन्द.शास्त्र और सामुद्रिक शास्त्र- विषयक ग्रन्थ भी अलबरूनी ने पढ़े थे। क्योंकि इनका उल्लेख भी 'इंडिका' में, जगह- जगह पर, पाया जाता है । ['श्रीकण्ठ पाठक, एम०ए०' नाम से मई, 1911 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'विदेशी विद्वान' में संकलित ।]