पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३०१

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परलोकवासी मिकाडो मुत्सू हीटो / 297 ज़मींदारों के इस आत्मोत्सर्ग से सम्राट की शक्ति बढ़ गई और निम्न श्रेणियों को पराधीनता की शृखला में बाँधे रखने वाली जमींदारी की कुत्सित प्रथा का दौर- दौरा जापान से उठ गया। अब सुधार शुरू हुए । अत्याचारी दण्डों की प्रथा बन्द हुई । नये मिरे मे, फ्रांस के कानून के आधार पर, जापानी कानून की रचना हुई। 1872 में, जापान की पहली रेल बनी । पाश्चात्य सन् और तारीख़ का व्यवहार होने लगा । पाठशालाओं में अँगरेज़ी की शिक्षा भी आरम्भ हो गई । दल के दल जापानी युवक शिल्प-कला की शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका और योरप पहुँचे । बड़े आदमी भी घर में न बैठे रहे । विदेशों में जाकर उन्होने भी देश के लिए अनुभव प्राप्त किया । विद्वान् व्यापारी भी पीछे न रहे । वे भी पाश्चात्य देशों की शिक्षा-प्रणाली और व्यापारी ढंग देखते फिरे । गष्ट्र ने भी बल-बुद्धि की चेष्टा की। अँगरेज़ो को नौकर रख रखकर उसने अपनी नौणक्ति को बढ़ाया। और जर्मन सैनिकों द्वारा अपनी स्थल-सेना का सुधार किया। 1889 में सम्राट् ने प्रजा को पार लियामेंट देने का वचन दिया और 1890 के नवम्बर में पहली जातीय महासभा (पारलियामेंट) की बैठक हुई। जापान में महान् परिवर्तन हो गया। उसका रूप ही बदल गया। इतने अल्प काल में इस प्रकार के परिवर्तन संसार में थोड़े ही हुए होंगे। ये परिवर्तन हो गये और मुत्सू हीटो तथा उनकी प्रजा की बुद्धिमत्ता के कारण इतने अल्पकाल में हो गये; परन्तु निर्विघ्न नहीं हुए। 1876 से लेकर 1884 तक-8 वर्ष तक-जापान के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में, जगह जगह, सुधारों के विरुद्ध कई छोटे-बडे विप्लव हुए। इधर घर की इम अग्नि को शान्त करने में मुत्सू हीटो रत थे, इधर उन्हें अपने घर से बाहर चीन ऐसी बड़ी शक्ति से तलवार नापनी पडी। 1874 में फारमोसा द्वीप के कुछ नौकारोही डाकुओं ने कई जापानी जहाजों को लूट लिया । उस समय फारमोसा चीन के अधीन था। शिकायत करने पर चीन ने डाकुओं को सजा देने में अपनी असमर्थता प्रकट की। तब मुत्सू हीटो को लाचार होकर चीन के विरुद्ध शस्त्र-ग्रहण करना पड़ा । जापानी नौसेना ने फारमोसा पर अधिकार करके डाकुओ को दण्ड दिया और उस समय तक न छोड़ा जब तक चीन ने उनकी क्षति की पूर्ति न कर दी। इन घरेलू और बाहरी झगड़ों को निपटाकर मृत्यू हीटो ने जापान को अन्य स्वतन्त्र देशों के बराबर समझे जाने का दावा संसार के सामने पेश किया। पहले तो किसी ने इस दावे की ओर ध्यान न दिया; परन्तु 1894 में आपने इस दावे को जोर से पेश करने पर मुत्सू हीटो को सफलता प्राप्त हुई। इगलैंड ने जापान से समानता-सूचक सन्धि कर ली। अन्य देश भी आगे बढ़े, और अन्त में, 1901 तक, अन्य स्वतन्त्र शक्तियों ने भी जापान के साथ मंत्री स्थापन की। 1894 में जापान को फिर चीन का मुक़ाबिला करने के लिए रणक्षेत्र में अवतीर्ण होना पड़ा। इस बार पहले की जैसी लड़ाई न थी। चीन ने पूरी-पूरी तैयारी कर ली थी। पर अन्त में चीन को हार जाना ही पड़ा। जापानी योद्धाओं ने अपनी वीरता का ।