पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३०३

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। - परलोकबासी मिकाडो मुत्सू हीटो/ 299 और तमाशे बन्द हो गये ! मन्दिरों में पूजा-पाठ और प्रार्थनायें होने लगी। महारानी दिन रात सम्राट की सेवा-शुश्रूषा किया करती। युवराज योशी हीटो बीमार थे । पिता को नाजुक अवस्था का समाचार सुनकर वे बेहोश हो गये, परन्तु अच्छी चिकित्सा के प्रभाव से शीघ्र ही चंगे हो गए । वे भी पिता की रोगशय्या के पास सदा मौजूद रहते । अन्त में स्त्री, पुत्र और प्रजा, किसी को कोई सेवा काम न आई। सबको रोते छोडकर सम्राट् उस लोक को चले गए जहाँ एक दिन हम सबको जाना है । मुत्सू हीटो के बाद उनके युवराज योशी हीटो जापान की गद्दी पर विराजमान हुए। आपने घोषणा-पूर्वक प्रण किया कि मै उसी तरह शासन करूँगा जिस तरह मेरे पिता करते थे । एवमस्तु। [सितम्बर, 1912 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'चरित्र-चित्रण' में संकल्ति ।]