पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२०

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316 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली प्रत्यक्ष का उदाहरण है कि दृढ़ निश्चय और प्रयत्न से हबशी (नीग्रो) जाति का एक दास कितने ऊँचे पद पर पहुंच सकता है और परोपकार के कितने बड़े-बड़े काम कर सकता है। आत्मावलम्बन की तात्त्विक शिक्षा देने वाली सैकड़ों पुस्तकों से जो लाभ न होगा वह 'आत्मोद्धार' की अद्भुत मूर्ति, बुकर टी० वाशिंगटन, के आत्मचरित से हो सकता है। इस ग्रन्थ के विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं। हाँ, इस बात की सूचना कर देना हम अपना कर्तव्य समझते हैं कि यदि इस पुस्तक का अनुवाद हिन्दी में किया जाय तो उससे देश का बहुत हित हो । अब बुकर टी० वाशिगटन का जीवनचरित सुनिए। दास्य-विमोचन अफ्रीका के मूल निवासियों की नीग्रो (हबशी) नामक एक जाति है। मत्रहवीं सदी में इस जाति के लोगों को गुलाम बनाकर अमेरिका में बेचने का क्रम आरम्भ हुआ। यह क्रम लगभग दो सदियों तक जारी रहा। इतने समय तक दासत्व में रहने के कारण उन लोगों की कितनी अवनति हुई, उन्हें कितना भयंकर कष्ट उठाना पड़ा और उनकी स्थिति कितनी निकृष्ट हो गई, ये सब बातें इतिहास-ग्रन्थों से जानी जा सकती हैं। कुमारी एच०बी० स्टो ने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है-इन गुलामों को दिन भर धूप में काम करना पड़ता था। यदि काम में कुछ सुस्ती या भूल हो जाय तो ओवरमीयर उन्हें कोडों से मारता था। यहाँ तक कि उनके शरीर से लोहू बहने लगता था। रात को उन्हें पेट भर खाने को भी न मिलता था। एक छोटी सी झोपड़ी में जानवरो की तरह वे रात भर बन्द कर दिये जाते थे। केवल धन के लोभ से पति और पत्नी, भाई और बहन, माना और पुत्र में वियोग कर दिया जाता था। यदि कोई गुलाम अत्यन्त दुःखित होकर भाग जाते तो उनके पीछे शिकारी कुत्तों के झुण्ड दौड़ा दिये जाते थे। इतना अन्याय होने पर भी, आश्चर्य यह है कि पादरी लोग दासत्व के इस घृणित रिवाज का समर्थन, बाइबिल के आधार पर, किया करते थे । यद्यपि सन् 1783 ईसवी में अमेरिका में स्वाधीनता प्रस्थापित हो गई थी और यह तत्त्व मान्य हो गया था कि 'ईश्वर की दृष्टि से सब मनुष्य-काले और गोरे-समान और स्वतन्त्र है' तथापि अमेरिकन लोगों ने लगभग 100 वर्ष तक नीग्रो जाति के काले मनुष्यो की स्वाधीनता क़बूल न की ! वे लोग नीग्रो जाति को 'मनुष्य' के बदले अपना 'माल' (Property) समझते थे ! परन्तु कुछ विचारवान् और महृदय महात्माओ के आन्दोलन करने पर यह मत धीरे-धीरे बदलने लगा। उत्तर अमेरिका की रियासतों ने अपने गुलामों को छोड़ दिया। परन्तु दक्षिण अमेरिका की रियासतों ने गुलामों को स्वतन्त्र करना न किया। तब सन् 1860 में इन रियासतो में परस्पर भयानक युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध चार-पाँच साल तक जारी रहा। उस समय महात्मा लिकन अमेरिका की स्वतन्त्र और संयुक्त रियामतों के प्रेसिडेंट (अध्यक्ष-राजा) थे। आपका दृढ़ विश्वास था कि दासत्व से बढ़कर