पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२१

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बुकर टी० वाशिंगटन-1 /317 और कोई पाप नही है।' इसलिए आपने सन् 1862 के सितम्बर महीने में यह इश्तहार जारी किया कि "सन् 1863 के आरम्भ अमेरिका में दासत्व की रीनि बन्द कर दी जायगी ।" इधर आपने युद्ध का भी ऐसा उत्तम प्रबन्ध किया कि दक्षिण-अमेरिका के सारे बाग़ी लोग हार गये। सन् 1865 ईसवी में पूर्वोक्त रियासतों में सन्धि हो गई। 1 जनवरी, सन् 1863 ईसवी के 'दास्य-विमोचन' के इश्तहार से नीग्रो जाति के तीम- चालीस लाख आदमियों को स्वाधीनता मिल गई। ये लोग महात्मा लिंकन को ईश्वर- तुल्य समझकर उसका यश गाने लगे। बाल्यावस्था और विद्याभ्यास बुकर टी० वाशिंगटन का जन्म, सन् 1858-59 में, एक अत्यन्त ग़रीब दास- कुल में हुआ। उनके बालकन की दुःखदायक, उद्वेगकारक और निराशाजनक दशा की कुछ कल्पना ऊपर लिखी हुई बातों से की जा सकती है। जिस समय अमेरिका के सब दाम मुक्त किये गये उस समय उसकी अवस्था तीन-चार वर्ष की थी। स्वतन्त्र होने पर उसके माता-पिता अपने बच्चों को लेकर कुछ दूर माल्डन नामक गाँव को, नमक की खान में मजदूरी करने के लिए, चले गये। वहाँ बुकर को भी दिन भर खान के भीतर नमक की भट्ठी में काम करना पड़ता था। यद्यपि बालक बुकर के मन में लिखना-पढ़ना सीखने की बहुत इच्छा थी, तथापि उसके पिता का ध्यान केवल कुटुम्ब के निर्वाह के लिए पमा कमाने ही की ओर था। ऐसी अवस्था में शिक्षा-प्राप्ति की अनुकूलता नही हो सकती। इतने में उस गाँव के समीप ही नीग्रो जाति की शिक्षा के लिए एक छोटी सी पाठशाला खोली गई । जब बुकर ने अपनी जाति के सब बालकों को स्कूल में जाते देखा तब विद्यार्जन के लिए उसकी स्वाभाविक इच्छा और भी प्रबल हो उठी। पिता के विरोध के कारण काम छोड़कर वह पाठशाला में न जा सकता था। इसलिए मजदूरी करने के बाद जब कुछ समय तक छुट्टी मिलती तब वह विद्याभ्याम किया करता था। इसके बाद वह रात को पाठशाला में पढ़ने लगा। इस काम के लिए उसे कभी-कभी तीन-तीन चार-चार मील पैदल चलना पड़ा। उसके आत्मचरित में लिखा है-"यद्यपि मुझे कई बार उदास और निराश होना पड़ा, तथापि मैंने शिक्षा-प्राप्ति का निश्चय कर लिया था।" इस निश्चय के अनुसार, सन् 1872 ईसवी में, वह अपने गाँव से सुदूरवर्ती हैम्पटन नगर के नार्मल स्कूल मे पढने गया। उस समय उसकी अवस्था तेरह-चौदह वर्ष की थी। उसको यह भी मालूम न था कि हैम्पटन कितनी दूर है। वहाँ तक जाने के लिए उसके पास पैसा भी न था। घर से निकलने पर उसे मालूम हुआ कि हैम्पटन 500 मील दूर है। मार्ग में उसे बहुत कष्ट सहना पड़ा। जब वह किसी बड़े शहर में पहुँचता तब मजदूरी करके कुछ कमा लेता और आगे बढ़ता । दो-दो दिनों तक उसको भूखा रह जाना पड़ा। रात को सड़क पर पटरी के किनारे वह सो रहता था। इस प्रकार अनेक दुःख और क्लेश भोगने पर वह हैम्पटन पहुंचा। वहाँ मुख्य अध्यापिका ने सबसे पहले - 1. Cf. "If slavery is not wrong, nothing is wrong !"