पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३३०

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326/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली आदि बन भी गये । परन्तु बुकर के सामने सच्चा 'पोलिटिकल हकूक' अपनी और अपनी जाति की शिक्षा तथा कला-कौशल द्वारा सहायता करना ही था। उन्होंने अपने को और अपनी जाति को ऊँचा बनाना ही सच्ची देशभक्ति और सच्चा राष्ट्र-प्रेम समझा। कहने को बुकर महाशय मर गये, परन्तु जब तक हबशी-जाति संसार में मौजूद है तब तक वे प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा पर राज करते रहेंगे। उनका दृष्टान्त सहस्रों हृदयों में ज्योतिःस्तम्भ बन कर अपना कार्य करता रहेगा-सन्मार्ग दिखाता रहेगा। भारत को भी ऐसे ही सच्चे कर्मवीरों की आवश्यकता है। परमात्मा इस दीन भारत में भी एक आध बुकर पैदा करने की कृपा करे । [ सेवावत' नाम से फरवरी, 1919 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित।]