पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३३२

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328 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 1873 में आप डाक्टर बूलर के साथ हिन्दुस्तान आये। यहीं आपका परिचय जैन धर्म और जैन-साहित्य से हुआ। तभी से आपने इन विषयों का अध्ययन आरम्भ कर दिया और धीरे-धीरे इनमें खूब पारंगत हो गये । स्वदेश को लौट जाने पर कई विश्वविद्यालयों में आप संस्कृत पढ़ाते रहे । 1889 ईसवी में आपकी बदली बान के विश्वविद्यालय को हो गई । आपने जैनों के 'कल्पसूत्र' नामक ग्रन्थ का सम्पादन करके उसे प्रकाशित किया और उसकी भूमिका में यह सिद्ध किया कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की शाखा नही; वह बौद्ध धर्म से बिलकुल ही जुदा धर्म है। इसके बाद आपने हेमचन्द्र-कृत 'परिशिष्ट-पर्व का प्रकाशन किया और कई जैन-ग्रन्थों का अनुवाद भी योग्यतापूर्वक निकाला । जर्मनी के विद्यार्थियों के लाभ के लिए प्राकृत भाषा-विषयक एक पुस्तक भी आपने लिखी। 'ध्वन्या- लोक' तथा अलङ्कारसर्वस्व' का अनुवाद भी, जर्मन भाषा में आपने कर डाला । पण्डित बालगंगाधर तिलक की तरह आपकी भी राय है कि वैदिक सभ्यता बहुत पुरानी है । योरप के विद्वान् उसे जितनी पुरानी समझते हैं उससे भी वह बहुत पहले की है। [मार्च, 1914 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । विदेशी विद्वान्' में संकलित ।]