पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३३५

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लार्ड किचनर /331 ये सारे कार्य साम्राज्य के लिए ऐसे महत्त्व के हुए हैं कि अंगरेज़ी इतिहास में लार्ड किचनर का नाम किसी राष्ट्रनिर्माता से कम नहीं । यदि लार्ड किचनर भारतीय सेनाओं को फिर से नये साँचे में न ढालते तो शायद सेना की इतनी संख्या भारत से यूरप के युद्ध-स्थल में न जा सकती। लार्ड किचनर के वीरत्व और अन्यान्य गुणों पर आज हमारी ही नही, सारे संसार की दृष्टि आकृष्ट है । विटिश जाति का यह सचमुच ही बड़ा भारी सौभाग्य है जो उसमे ऐसे नररत्न विद्यमान हैं। [जनवरी, 1915 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित।