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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३४२

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338 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली था। इसलिए वह वहाँ थोड़े दिन एक छापेखाने की नौकरी करके लन्दन गया और वहाँ नौकर हो गया। वह समय पर उपस्थित रह कर छापेखाने के अपने काम को बड़े ध्यान से करता था। इसलिए उमका स्वामी उससे बहुत सन्तुष्ट रहता था। वह अक्षर बड़ी फुर्ती से जोडता था। इसलिए जल्दी के काम उसी को मिला करते थे। ऐसे कामों में धन भी भी अधिक मिलने लगा और ख़र्च के बन्धेज से धीरे धीरे उसके पास कुछ धन इकट्ठा भी हो गया। लन्दन में डेढ़ बरस रह कर वह फ़िलाडेलफ़िया को लौट आया और फिर अपने पुराने स्वामी के यहाँ नौकरी करके बहुत सा रुपया कमाया । उस रुपये से उसने निज का छापाखाना खोल लिया और एक समाचार-पत्र निकालने लगा। इस समाचार-पत्र के चारों ओर ग्राहक हो गये और उसकी प्रतिष्ठा दिन दिन बढ़ने लगी । सम्पत्ति होने पर भी उसने अपने व्यवहार में तनिक भी अन्तर न पड़ने दिया। बहुधा हीन दशा मे जो उन्नति पाते हैं वे इतराने और औरों को तुच्छ समझने लगते हैं । परन्तु फ्रेंकलिन ऐमा न था । ज्यों ज्यों उमकी बढ़ती होती गई त्यों त्यों वह और भी नम्र होता गया। वह यहाँ तक निरभिमानी था कि बाजार से काग़ज़ मोल लेकर, ठेले पर रख कर, आप ही उसे खींच लाता था। कुछ दिन पीछे उसने विवाह किया। उसकी स्त्री भी शील स्वभाव की अच्छी थी। इस कारण उन दोनों में बड़ा प्रेम था। उसने एक बड़ा पुस्तकालय साधारण लोगों के लिए खोला । उसमें चन्दा देने वालों को पुस्तकें देखने के लिए मिला करती थी। अमेरिका में इस ढंग का यह पहला ही पुस्तकालय था। उमने 'दि वे टु वैल्थ' (The Way to Wealth) अर्थात् धन उपार्जन करने का मार्ग नामक एक ग्रन्थ रचा । इस पुस्तक की अमेरिका में बड़ी बिक्री हुई। सन् 1739 में वह गाँव के कामों पर ध्यान देने लगा। उन दिनों पुलिम की अवस्था अच्छी न थी। उसके सुधार के लिए बड़ा प्रयत्न करके उसने सरकार से अच्छा प्रबन्ध कराया। उसने आग से हानि होने का बीमा करने वाली कम्पनियां खड़ी करने के लिए लोगों को उत्साहित किया। उसने शिक्षा के लिए पाठशालायें खुलवाईं और अपने देश की रक्षा के लिए सेना रखवाई। इस समय फ्रैंकलिन का मन पदार्थ-विज्ञान की ओर झुका। उसने यह सिद्ध कर दिया कि कृत्रिम बिजली, जो पदार्थों की रगड़ से उत्पन्न होती है, और अकृत्रिम बिजली (जो आकाश से गिरती है) में कुछ भेद नहीं है, और अकृत्रिम बिजली को आकाश से उतार सकते हैं। जब यह बात निश्चित हो गई तब उसने विजली से बड़े बड़े ऊँचे घरों के बचाव की युक्ति अपनी बुद्धि से मोच निकाली। वह युक्ति यह थी कि ऊँचे ऊँचे मकानों में कच्चे लोहे की छड़ें लगाई जायें, जिनका एक सिरा धरती में गड़ा रहे और दूसरा सिरा मकान के ऊपर निकला रहे । बिजली उमी छड़ के ऊपर गिर कर धरती में समा जाय और मकान को कुछ भी हानि न पहुंचे । उस समय फ्रेंकलिन से बढ़ कर प्रतिष्ठित और कोई भी न था। इस असाधारण मनुष्य ने केवल विद्या ही के बल से इतनी प्रतिष्ठा पाई । उसमें विशेषता यह थी कि उसने किसी पाठशाला में किसी अध्यापक से कुछ नहीं पढ़ा। जो कुछ विद्या उसे प्राप्त हुई वह उसके ही परिश्रम का फल था। वह निर्धन था, तो भी अपने अन्न-वस्त्र के खर्च