डाक्टर एल० पी० टैसीटोरी एम० ए०, पी-एच. डील हिन्दी बोलने और हिन्दी भाषा के पत्र और पुस्तकें पढ़ने वालों में से बहुत कम लोगों ने डाक्टर टैसीटोरी का नाम सुना होगा। उनके काम से तो शायद ही दस-पाँच हिन्दी-प्रेमी सज्जन परिचित हों। डाक्टर साहब बड़े विद्वान्, बड़े विद्याव्यसनी और बड़े श्रममहिष्णु थे। खेद है, पिछले नवम्बर महीने में, आपका शरीरान्त हो गया । इटली में रह कर भी, जिस देश की प्राचीन और अर्वाचीन भाषाओ पर आपका अप्रतिम प्रेम था उसी देश- भारतवर्ष में आकर और कई वर्ष रह कर, बीकानेर में आपने शरीर छोड़ दिया। श्लेष्मज्वर, अर्थात् इन्फ्लुयंजा, से आपकी मृत्यु हुई। डाक्टर साहब की जन्मभूमि इटली का यूडाइन नगर था । भारतवर्ष की भाषायें सीखने का आपको व्यसन सा था। पच्चीस ही वर्ष की उम्र में, अपने ही देश में बैठे बैठे, बिना किसी अध्यापक की सहायता के, आपने हिन्दी, उर्दू, गुजराती (नई पुरानी दोनों), संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश आदि भाषाओं का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त कर लिया था- इतना ज्ञान कि आप हिन्दी में अपने विचार व्यक्त तक कर मकने लगे थे; हिन्दी में आप पत्र लिख सकते थे। 31 वर्ष के होने पर डाक्टर साहब ने अपने भाषा-ज्ञान को और भी बढा लिया। यहाँ तक कि इस देश की भाषाओं के सम्बन्ध में आपने कितने ही गवेषणापूर्ण लेख भी प्रकाशित कर दिये । लैटिन और ग्रीक भाषायें तो आप पहले ही से जानते थे । नई और पुरानी मारवाड़ी, डिंगल, ब्रजभाषा इत्यादि का भी अच्छा ज्ञान सम्पादन कर लिया। अँगरेज़ी में आप एम० ए० थे ही । तुलसीदास की रामायण पर निबन्ध लिख कर अपने देश के विश्वविद्यालय से आपने पी-एच० डी० (अर्थात् दर्शन-शास्त्र के आचार्य) की भी पदवी प्राप्त कर ली थी। और और लेखों के मिवा मारवाड़ी भाषा का व्याकरण लिख कर आपने इंडियन ऐंटिक्वेरी में प्रकाशित कराया। जैन-साहित्य पर भी आपका विशेष प्रेम था। 'उपदेश-माला', 'भववैराग्य-शतक' तथा 'इन्द्रिय पराजय-शतक' का अनुवाद आपने अपनी मातृभाषा इटालियन में कर डाला। जैन-माहित्य का ज्ञान सम्पादन करने में आपको जैनाचार्य श्रीविजयधर्म सूरि से बहुत सहायता मिली। आचार्य महाराज से डाक्टर माहब का अनिर्बन्ध पत्र-व्यवहार रहता था। भारतवर्ष आकर यहों अपने भाषाज्ञान की वृद्धि करने की इच्छा बहुत पहले ही से आपके हृदय मे थी। इसे पूर्ण करने के लिए इस देश के सरकारी कर्मचारियों से आपने लिखा-पढ़ी शुरू की। इसमें आपको मफलता हुई। आप राजपूताने के भाटों की रचनाओं तथा ऐतिहासिक लेखों का संग्रह करने के लिए नियुक्त किये गये। यह काम
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