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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३५०

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346/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली । - उसके उत्तराधिकारी ने ह्य गो को उस नाटक का प्रचार करने की आज्ञा दे दी। पर ह्य गो ने अस्वीकार कर दिया। 38 वर्ष की अवस्था में वह फ्रेंच एकेडमी नामक विद्वत्समिति में सम्मिलित हुआ। उस समय उसने जो वक्तृता दी वह नेपोलियन की कीत्ति का स्मारक है। 1846 में उसने चेम्बर आव् पीयर्स अर्थात् अमीरों की राजकीय सभा में पोलैंड का पक्ष लेकर व्याख्यान दिया। उसका दूसरा व्याख्यान फ्रांस की तट-रक्षा पर था। उसने नेपोलियन के निर्वामित परिवार के लिए भी खूब प्रयत्न किया। उसका फल यह हुआ कि फ्रांस के राजा लुई फिलिप ने निर्वासन-विषयक अपनी आज्ञा रद्द कर दी। इसके बाद फ्रांस में षड्यन्त्रकारियो ने हत्या पर हत्या करके नेपोलियन बोनापार्ट को सिंहासनारूढ कराया । ह्य गो निर्वासित हुआ और कोई 28 वर्ष तक वह अपने देश के बाहर रहा । इसी समय उमका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'ले चेटीमेंटम' (Les chatiments) निकला। इसमें ह्य गो के क्षुब्ध हृदय से ऐसे उदगार निकले हैं जो किसी भविष्यद्वक्ता के वचन जान पड़ते हैं। उनमे पदलालित्य है, दिव्य भावावली है और हृदयहारी व्यंग्य है । सम्भव नही, कोई उमका पाठ करके मुग्ध न हो जाय । 'ले चेटीमेंट्स' के प्रकाशित होने के तीन साल बाद 'ले कनटमप्लेशन्म' (Les contemplations) निकला । यदि 'ले चेटीमेंट्स' अर्धरात्रि के अन्धकार में लिखा गया था तो इसकी रचना उषःकाल के मनोरम प्रकाश में हुई थी। इसके 6 भाग हैं। पहले भाग में जीवन के प्रभात-काल के सुख-दुःख, भाव और कल्पनायें, उत्साह और स्फूर्ति वणित हुई हैं । इसके प्रयुक्त छन्दों में भी वही मधुरिमा और लालित्य है । दूसरे भाग में भाषा की वैसी ही विशदता और छन्दो का वैसा ही वैचित्र्य है, पर भावों में गम्भीरता आ गई है । तीमरा भाग और भी अधिक परिष्कृत हो गया है । चौथे भाग में शोक का उच्छ्वाम है। विक्टर ह्य गो की एक कन्या अपने पति के साथ 1843 में नारमेण्डी के किनारे डूबकर मर गई थी। इसी घटना से व्यथित होकर कवि ने जो कवितायें लिखी थी वे मब इस भाग में हैं। इसके एक एक पद से कवि की मर्म-व्यथा प्रकट होती है। इससे अधिक हृदय-ग्राही वर्णन अन्यत्र नहीं मिल सकता। पांचवें और छठे भाग में भी कुछ कवितायें, भावों की गम्भीरता और विशदता के लिए अद्वितीय हैं । 1862 मे ह्य गो का प्रसिद्ध उपन्यास 'ले मिजेरेबिल' (Les miserables) निकला। आज तक ऐसे उपन्यास की सृष्टि ही नहीं हुई है। इसमें आत्मा की कथा है- वह कैमे विकृत होती है और उमका कैसे उद्धार होता है; दुःखो की ज्वाला से उमका परिणुद रूप कैसे उदित होता है। इसमें जीवन के आलोक और तिमिर का, उत्थान और पतन का, बड़ा ही अच्छा वर्णन है। इसके बाद ह्य गो ने विलियम शेक्सपियर की कृति पर आलोचनात्मक निबन्ध लिन्त्रा। उसके पुत्र ने शेक्सपियर के नाटको का अनु किया था। उसी के साथ भूमिका के रूप में जोड़ने के लिए इम निबन्ध की रचना हुई थी। इसके बाद उसके अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए। यह तो हम कह ही आये हैं कि ह्य गो में विलक्षण रचना-शक्ति थी। अन्तकाल तक उसमें यह शक्ति विद्यमान रही। उसकी मृत्यु के बाद उसके कई ग्रन्थ