पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३६३

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यमलोक का जीवन /359 1 खाने का सामान बहुत कम रह गया था । कुत्ते प्रायः सभी मर चुके थे। अतएव हम लोगों ने वापस जाने का विचार किया । वहाँ से हमारा जहाज 300 मील दूर था । मब लोग निहायत कमजोर हो गये थे । खैर किसी तरह हम लोग पीछे लौट । हममें से किसी-किसी को बर्फ ने कुछ काल के लिए अन्धा तक कर दिया। कलेजे को कड़ा करके हम सबने जहाज की तरफ़ पैर फेरा । धीरे-धीरे सब कुत्ते मर गये, सिर्फ दो बचे । अतएव हम लोगो को खुद गाड़ियां खींवनी पडी। कभी-कभी तीन-तीन मन वज़न गाड़ियों मे भर कर हमने खीचा । ओह ! उस मुसीबत का स्मरण आते ही बदन काँपने लगता है । वर्णनातीत दुख सह कर 3 फ़रवरी 1904 को हम लोग अपने जहाज़ पर वापस आये। वहाँ हमने देखा कि हमारी मदद के लिए एक मरा जहाज आ गया है । उसमें हम लोगो की वानगी चिट्ठियाँ और अखबार वगैरह मिले । तब हमने जाना कि बोर युद्ध की समाप्ति हो गई और हमारे बादशाह सातवे एडवर्ड की गजगद्दी का जलसा भी हो चका। हमारा 'डिस्कवरी' नामक जहाज 1902 के आरम्भ से बर्फ के भीतर पड़ा है। आशा है वह नही वापम आवे और अपने काम की मफलता से भेजने वालो ही के नहीं, किन्तु मारे समार के आनन्द और ज्ञान की वृद्धि करने का साधक होगा। [सितम्बर, 1904 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'ज्ञान भारती' 'प्रबंध-पुष्पांजलि' पुस्तकों में संकलित ।]