370/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली यह बर्फ हजारों वर्ष का पुराना होगा और पत्थर की तरह अपनी जगह पर जम गया होगा। अतएव इन चट्टानों पर 'स्लेज' गाड़ियां आसानी से चल सकेंगी। परन्तु कमाण्डर पीरी ने इस अनुमान को गलत साबित कर दिया। पीरी ने यथा सम्भव 'स्लेज' गाड़ियों से भी काम लिया और जहाज से भी। यदि बर्फ समुद्र के तल तक पत्थर की तरह जमा होता तो वह तूफ़ानों से न टूटता और पीरी की इच्छा के विरुद्ध उनके जहाज को ग्रीनलैंड की तरफ, दक्षिण-पूर्व की ओर, न बहा ले जाता। पीरी ने समुद्र में बर्फ जमा जरूर पाया; पर वह पुराना न था। इसी से तूफ़ान के वेग से वह टूट गया, पानी के ऊपर बहने लगा, और अपने साथ 'रूज़वेल्ट' को भी ग्रीनलैंड की तरफ बहा ले गया। अतएव 'स्लेज' गाड़ियों पर सवार हो कर ध्रुव तक पहुँचने की आशा व्यर्थ है। अनेक विघ्न बाधाओं को टालकर, और 'स्लेज' गाड़ियों पर दूर तक जाने में असमर्थ होकर भी, पीरी साहब 87 अक्षांश से भी कुछ दूर आगे बढ़ सके, यही गनीमत समझना चाहिए। आपकी यात्रा का सविस्तर वृत्तान्त प्रकाशित होने पर कितनी ही अद्भुत अद्भुत बातों के मालूम होने की आशा है। [फरवरी, 1907 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'प्रबन्ध-पुष्पांजलि' में संकलित।]
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