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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३७३

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उत्तरी ध्रुव की यात्रा-1 /369 उत्तरी समुद्र के किनारे, ग्रांट रोड नामक भू-प्रदेश के पास 'रूजवेल्ट' ठहरा । वहीं उसने जाड़ा बिताया। फरवरी में हम लोग वर्फ पर चलने वाली स्लेज नामक छोटी छोटी गाड़ियाँ लेकर उत्तर की ओर रवाना हुए । हेकला और कोलम्बिया के रास्ते हम आगे बढ़े। 84 और 85 अक्षांशों के बीच हमें खुला हुआ समुद्र मिला । उस पर बर्फ जमा हुआ न था । तूफ़ान ने जमे हुए बर्फ को तोड़ फोड़ डाला; हमारे खाने पीने की चीजो को बर्बाद कर दिया; हमारी टोली के जो लोग पीछे थे, उनका लगाव काट दिया। इस कारण आगे बढ़ने में बहुत देर हुई। किसी तरह हम लोग 87 अक्षांश 6 मिनट तक पहुँचे । आगे बढ़ना असम्भव हो गया। लाचार लौटे । लौटती बार 8 कुत्ते मारकर खाने पड़े। कुछ दिनों में फिर खुला हुआ समुद्र मिला। उसमें पानी भरा था। राम राम करके ग्रीनलैंड के उत्तरी किनारे पर पहुंचे। गह में अनेक आफ़तो का सामना करना पड़ा । बड़ी बड़ी मुसीबतें झेलने पर ग्रीनलैंड के सामुद्रिक किनारे के दर्शन हुए । वहाँ के कई बफिस्तानी बैल मारकर खाये । किसी तरह किनारे किनारे चल कर जहाज़ के पास पहुँचे । हमारी टोली के जिन लोगों का साथ छूट गया था, उनमें से कुछ को तूफ़ान ग्रीनलैंड के उत्तरो किनारे पर ले गया। कुछ आदमी एक तरफ गये, कुछ दूसरी तरफ । एक टोली को मैंने भूखों मरते पाया और उसके प्राण बचाये । एक हफ्ते 'रूजवेल्ट' पर रह कर हम लोग कुछ तरोताजा हुए। फिर 'स्लेज' गाड़ियों पर सवार हुए और पश्चिम की तरफ चले। ग्राटलैंड नामक भूभाग के सारे उत्तरी किनारे को देख डाला । इतनी दूर चले गये कि उस किनारे की दूसरी तरफ जा पहुँचे । घर लौटती बार बर्फ और तूफ़ान का लगातार मामना करना पड़ा। 'रूजवेल्ट' तूफ़ानों से बड़ी बहादुरी से लड़ता आया । वर्फ से लड़ने में 'रूजवेल्ट' बड़ा बहादुर है। इस चढ़ाई में न कोई आदमी मरा और न कोई बीमार ही हुआ। यह पीरी साहब की संक्षिप्त चिट्ठी है। आपको आशा थी कि आप उत्तरी ध्रुव तक ज़रूर पहुँच जायंगे। पर नहीं पहुंच सके। बर्फ के तूफ़ानों ने उन्हें 87 अक्षांश से आगे नहीं बढ़ने दिया। तिस पर भी वे इतनी दूर तक गये जितनी दूर तक आज तक कोई नहीं गया था। पीरी साहब अमेरिका के रहने वाले हैं । अतएव उत्तरी ध्रुव की सैर करने वालो में, दूरी के हिसाब से, इस समय अमेरिका का नम्बर सब से ऊँचा है। पीरी साहब का इरादा था कि सबाइन अन्तरीप से 350 मील उत्तर वे अपना खेमा रक्खेंगे। वहाँ से उत्तरी ध्रुव 500 मील है । राह में बर्फ के मैदान का विकट बियाबान है। इसे कोई डेढ़ महीने में पार कर जाने की उन्हें उम्मेद थी। परन्तु तूफ़ानों की प्रचण्डता ने उनकी आशा नहीं पूरी होने दी। 1876 ईसवी में नेयर नाम के जो साहब उत्तरी ध्रुव देखने के इरादे से 83 अक्षांश तक गये थे, उन्होंने लौट कर बतलाया था। कि ग्रांटलैंड नामक भूभाग के उत्तर, मील की लम्बाई-चौड़ाई में, समुद्र बिलकुल बर्फ से जमा हुआ है। आपने राय दी थी कि बर्फ 50 फुट तक गहरा था। तब से लोगों ने यह अनुमान किया था कि इस तरह का समुद्र बहुत करके ध्रुव के पास तक गया होगा और वह बहुत गहरा न होगा । उस पर बर्फ की बहुत मोटी तह ठेठ नीचे तक गई होगी। लोगों ने समझा था कि