पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३८

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अफगानिस्तान में बौद्धकालीन चिन्ह भारत की कूपमण्डूकता और दीनावस्था बहुत पुरानी नहीं । एक समय था जब इस बुढ़े भारत की सत्ता और सभ्यता की पताका एशिया ही में नहीं, योरप और अफरीका तक में फहराती थी। सम्राट अशोक के राजत्व-काल की याद कीजिए, जब बौद्ध-श्रमणों के जत्थे के जत्थे सीरिया, स्याम, मिस्र, मकदूनिया और एपिरस तक पहुँचे थे और भगवान् बुद्ध के प्रतिष्ठित धर्म के सदुपदेशों में वहाँ वालों को उपकृत करते थे। उस समय उन देशों में यूनानियों का आधिपत्य था। बौद्ध धर्म के उपदेशकों का प्रभाव विदेशियों पर यहाँ तक पड़ा था कि कुशान-नरेश कनिष्क भी इस धर्म में दीक्षित हो गया था। कनिष्क कोई छोटा-मोटा राजा न था; वह राजेश्वर था । उसने अपने गृहीत धर्म के प्रभाव से दूरवर्ती चीन तक को प्रभावान्वित किया था। भारतीय धर्म ही नहीं, भारतीय चित्रकला, मूर्ति- निर्माण-विद्या और संगीत तक ने मध्य एशिया की गह चीन और जापान तक में प्रवेश किया था। हाय, जिस भारत ने अपने धर्म, अपने कला- कोणल और अपनी सभ्यता का पाठ दूसरे दूसरे देशों और दूसरी दूसरी विलायतों को पढ़ाया वही आज असभ्यों में नहीं तो अर्द्ध-सभ्यों में गिना जा रहा है । महाकवि ने ठीक - हतविधिलसितानां ही विचित्रो विपाक: रणजीत पण्डित नाम के एक बारिस्टर ने 'माडर्न रिव्यू' में एक लेख, अभी कुछ ही महीने पूर्व लिखा है । उसमें उन्होंने उन बौद्ध-कालीन इमारतों-स्तूपों, चैत्यों और विहारों आदि-के ध्वंसावशेषों का वर्णन किया है जो अफ़ग़ानिस्तान के सदृश मुसलमानी देश में भी अब तक पाये जाते हैं। उनका वर्णन पढ़कर कौन ऐसा स्वदेशप्रेमी भारत- वासी होगा जो अपनी वर्तमान दयनीय दशा पर शोक से आकुल न हो उठे ? बौद्ध विद्वान् कुमारजीव भारतवासी ही थे। उन्होंने चीन जाकर वहाँ अनेक बौद्ध ग्रन्थों का अनुवाद चीनी भाषा में किया था। परमार्थ पण्डित और बोधिधर्म आदि भारतवासियों ने, सैकड़ों हस्तलिखित बौद्ध ग्रन्थों को अपने साथ ले जाकर, चीन में उनका प्रचार किया और अनन्त चीनियों को अपना समानधर्मा बनाया । इधर इन लोगों ने यह सब किया, उधन चीन देश के निवासी कितने ही बौद्ध श्रमणों ने भारत की यात्रायें करके यहाँ के धर्मग्रन्थों और धर्म-भावों से अपने देशवासियों को बौद्ध बनाने में सहायता पहुंचाई। ईसा के आठवें शतक में अरबों ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया । धीरे धीरे वे लोग मध्य-एशिया तक जा पहुंचे। अतएव उन देशों में फैली हुई भारतीय सभ्यता पर आघात होने लगे । तथापि भारतीय विद्या और कलाकुशलता की कदर उन