सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कम्बोडिया में प्राचीन हिन्दू-राज्य / 33 तट उसे छीननेवालों को महारारव नरक में ढकेले जाने की विभीषिका दिखाई गई है । यह विभीषिका भी भारतीय शिलालेखों ही की नक़ल है । प्राचीन काम्बोज के प्रान्तों और नगगें के नाम भी वैसे ही थे जैसे कि इस देश के हैं । यथा-पाण्डुरंग, विजय, अमरावती आदि । काम्बोज में प्राप्त शिलालेखो से विदित होता है कि यहाँ किमी समय क्षत्रिय नरेशों की राजकुमारियाँ ब्राह्मणो को भी ब्याही जाती थी । वेद-वेदांग में पारंगत अगस्त्य नाम का एक बाह्मण ईसा की मातवी शताब्दी के अन्त में 'आर्य्य देश' से काम्बोज को गया था । वहाँ उसने राजकुमारी यशोमति का पाणिग्रहण किया था। उसी का पुत्र नरेन्द्र वर्मा वहाँ के राजसिहासन का अधिकारी हुआ और राज्य-संचालन उसने किया । दसवी शताब्दी में राजा गजेन्द्र वर्मा की कुमारी इन्द्रलक्ष्मी का विवाह यमुना निवासी दिवाकर नाम के विद्वान् ब्राह्मण से हुआ था । वासुदेव ब्राह्मण और जतेन्द्र पण्डित के साथ भी काम्बोज की राजकुमारियो का विवाह हुआ था। नोज में जन्म-मृत्यु आदि से सम्बन्ध रखनेवाले सस्कार हिन्दू-धर्मशास्त्रों के अनुमार होते थे। मृतप्राणी 'शिवलोक' को प्राप्त होते थे । नये नरेशो के मिहासनासीन होने पर अभिषेक का काम दिवाकर, योगीश्वर और वामशिव आदि नामधारी पण्डित कगते थे । राज-गुरुओं का बडा मान था । वे अपने शिष्य राजा को धर्मशास्त्र, नीति और व्याकरण आदि पढ़ाते थे । काम्बोज-नरेश महाहोम, लक्षहोम, कोटिहोम, भुवनार्थ और शास्त्रोत्सव आदि धाम्मिक कृत्य करते थे। ईमा के मातवे शतक तक बौद्ध धर्म का प्रचार काम्बोज में था । हाँ, वह अपने शुद्ध रूप मे न रह गया था। उसके अनुयायियो के आचार और धाम्मिक व्यवहार हिन्दुओ के आचार-व्यवहार से कुछ कुछ मिल गये ये । दोनों का मम्मिश्रण-सा हो गया था। शिव और विष्णु के मन्दिरो को जैसे धन, भूमि, दास-दासियां और नर्तकियाँ दान के तौर पर दी जाती थी वैसे ही बौद्ध-विहारों को भी दी जाती थी। बौद्ध धर्म से सम्बन्ध रखनेवाली और जातको में वर्णन की गई कथाओं की दर्शक मूर्तियाँ भी काम्बोज में पाई गई हैं । पर उनकी संख्या कम है। हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का हो आधिक्य है । सबसे अधिक मूर्तियाँ शिव, उमा और शक्ति की पाई गई हैं। उसके बाद विष्णु, लक्ष्मी, ब्रह्मा, गणेश, स्कन्द और नन्दी आदि की। ['श्रीयुत 'ज' नाम से सितम्बर, 1926 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'पुरातत्त्व-प्रसंग' में संकलित।