पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४१३

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अफ़रीका के खर्वाकार जंगली मनुष्य / 409 हुआ पकड़ लाए । ये दोनों खर्वाकार जंगली थे । इस वामनरूप जंगली के विषय में जो कुछ स्टैनली साहब ने लिखा है उसका आशय उन्हीं के मुंह से मुनिए- "इसकी लंबाई केवल 4 फुट थी; मिर 201 इंच था; छाती 253 इंच थी; टाँगें 22 इंच थीं; भुजाएँ 19: इंच थीं। यह पूग जवान था। उम्र इसकी कोई 21 वर्ष होगी। इमका रंग ताँबे का जैसा था । इसके सिर पर एक अजीब किसम की टोपी थी; उस पर तोते के परों का एक गुच्छा था। यह टोपी इसे या तो किमी ने तोहफ़े के तौर पर दी होगी, या इसे इसने कहीं से चुरा लिया होगा। छाल के कपड़े के एक लंबे टुकड़े की लँगोटी इसने पहन रक्खी थी। उसके सिवा और यह बिलकुल दिगंबर था। इसके एक हाथ में धनुर्बाण था, और दूसरे में भाला। इसके हाथ बहुत नाजुक जान पड़ते थे । मालूम होता था कि केले छीलने का काम इसमे लिया जाता था । इम वामन को देखकर मेरे मन में जो-जो भावनाएँ हुई उनका अनुमान कोई नही कर सकता। यह बावन अंगुल का शरीर प्राचीन से प्राचीन मनुष्यो के वंश से उत्पन्न हुआ है । हजारों वर्ष पहले इसके पूर्वज जिम दशा और जिस भेष में थे उसी दशा और उमी भेष में यह भी है । इसको देखा, मानो कई हजार वर्ष पहले हुए मनुष्यों को देख लिया । जब से इनके वंश की उत्पनि हुई, तव मे ये बगवर इम जंगली अफ़रीका में मुख से निवास कर रहे हैं । ईजिप्ट, आसीरिया, बाबुल, फ़ारिम, ग्रीम और रोम का उत्कर्ष भी और पतन भी हुआ। उनकी पुरानी संपनि, उनकी पुरानी प्रभुता और उनके पुगने तर्ज के मनुष्य एक भी नही; परन्तु ये वर्वाकार जंगली पूर्ववत् बने हुए है । इनमें कोई अतर नहीं हुआ । नाइज़र नदी के किनारे से, धीरे-धीरे, ये अब मध्य अफ़रीका के इन अगम्य जंगलों में आ गए हैं, और इधर-उधर पत्तो के झोपड़े बनाकर पूर्ववत् शिकार करते फिरते हैं । इनके सजातीय केप-कालोनी मे वशम्यन कहलाते है; लुलगू की तराई में बटवा कहलाते हैं; मोनबुटू में अक्का कहलाते है; और शहरू के आसपास बमबुट्टी कहलाते हैं। मूदान और जै जीबार के रहने वाले, जो मेरे माथ थे, उनके पास खड़े हुए इस छोटे से मनुष्य के बच्चे के मन में अनेक प्रकार के विचार आते रहे होंगे । उसके चेहरे को देखने ही से जान पडता था कि वह बड़े मोच-विचार में था । भीमाकार मनुष्यों को अपने चागे ओर देवकर, अपनी भावी दशा का विचार कर के और प्राण बचने की आशा से उत्कटित होकर इमती अजब हालत हो रही थी। आने से इतने ऊँचे और मोटे मनुष्यों को देखकर वह कहता होगा कि ये कहां से आए ! क्या ये स्वर्ग से आ गए ? अथवा पाताल से ? ये मुझे क्या करेगे ? क्या मुझे मार डालेगे ? कैसे ? भूनकर, जैसे हम लोग शिकार भूनते हैं ? अथवा किमी बडे बर्तन मे डालकर मुझे उबालेगे । " इस प्रकार के विचार जब दम मनुष्य के मन में आ रहे थे, तब मैंने इसको अपने पास बिठलाया; इसकी पीठ ठोंकी; इसके बदन पर हाथ फेरा । इस तरह इसे कुछ कुछ निर्भय करके मैंने इसे केले खाने को दिए । केलो को उसने बड़ी प्रसन्नता से लिया। उन्हें लेकर वह मुमकुराया । मानो उसने इस तरह अपनी कृतज्ञता प्रकट की।, यह बौना बड़ा चालाक था। इससे हम लोगों ने संज्ञा से बातचीत की। हमने पूछा, यहाँ से गाँव