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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२

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38 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली इमारतों को तोड़-फोड़कर जमींदोज कर दिया। इसके कुछ समय पीछे, बामियान की तराई की दूसरी तरफ़, शहरे-गोल-गोला नाम का एक नगर बसा। परन्तु बारहवीं सदी में चंगेजखां मंगोल ने उसे भी विध्वंस करके बौद्धों से बामियान की दशा को पहुँचा दिया । काल बड़ा बली है। वह सदा बनाने और बिगाड़ने ही के खेल खेला करता है। अभ्रङ्कष प्रासादो और दुर्दान्त सम्राटों को देख देखकर वह हँसता है। वह कहता है- तुम्हारी यह शानो-शौकत है कितने दिन के लिए ! इन्ही खेलों को देखकर एक कवि ने कहा है- न यत्र स्थेमान दधुरतिभयभ्रान्तनयना गलद्दानोद्रकभ्रमदलिकदम्बाः करटिन: । लुठन्मुक्ताभारे भवति परलोकं गतवतो हरेरद्य द्वारे शिव शिव शिवानां कलकल: ।। ['श्रीयुत परमेश्वर शर्मा' नाम से जुलाई, 1927 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'पुरातत्त्व-प्रसंग' पुस्तक में संकलित]