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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२०

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416/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली कर इन लोगों में बाल संवारने की चाल बड़ी विलक्षण है । मर्द समूचा सिर मुड़ा- कर बीच में एक चोटी रखते हैं । इसी चोटी में कोई पाँच इंच व्यास का एक चक्र लगा- ये जूड़ा-सा बना लेते हैं । जूड़े में ये लोग कभी-कभी चिड़ियो के पर भी खोंसते हैं। तंबाकू का डिब्बा, सुई आदि भी ये जूडे ही में रखते हैं । औरतें अपने बालों में चरबी तथा और कई चीजें लगाकर उन्हें कड़ा बना लेती हैं। फिर उनको एक साथ लपेटकर ऊपर को उठी हुई एक लंबी चोटी तैयार करती है। कोई-कोई अपने बालों की पतली-पतली चोटियाँ बनाकर उन्हे जुल्फ़ की तरह छाँट देती हैं। दाँतों में मिस्सी मलने और कीलें लगवाने का भी इन्हें शौक़ है। अन्यान्य असभ्य जातियों की तरह जूलू लोग भी अपना बदन रंगते है। इन लोगो में इस रिवाज ने कुछ-कुछ धाम्मिक भाव धारण कर लिया है । जैसे हम लोगो के यहाँ कर्णवेध या यज्ञोपवीत होता है, वैसे ही इनके यहाँ भी एक रस्म होती है। उसके पहले लड़कों का बदन जून और पानी में घुली हुई सफ़ेद मिट्टी से रंगा जाता है । और एक बार सिर से पैर तक मिट्टी से पोतकर लड़के धूप में नंगे नाचने के लिए छोड़ दिये जाते हैं । बदन मूम्न जाने पर फिर पोता जाता है । इस प्रकार जब तक वदन का रंग खूब उजला नही हो जाता, तब तक बार-बार उन पर रंग चढ़ाया जाता है । जवानी में औरतें भी कभी-कभी अपना बदन रंगती है । नाक, कान आदि छिदाने की चाल भी इन लोगों में है। बहुत-सी औरतें तो अपना ऊपर का होंठ भी छिदा लेती हैं और उसमें बहुत मोटी नथ पहनती है । किंतु अब यह रिवाज धीरे-धीरे कम हो रहा है। जूलू लोग छोटी-छोटी फूस की झोपड़ियों में रहते हैं । वृक्षो की मजबूत और झुकाई जाने लायक़ शाखाओं को ये जमीन में गाड़ देते है और उनके दूसरे सिरों को चारो तरफ से झुका कर मिला देते हैं। ऊपर से डाल देते हैं। इनकी झोंपड़ियां बहुत छोटी होती हैं। इनके भीतर कोई आदमी सीधा नहीं खड़ा हो सकता। इन झोंपड़ियों का दरवाजा इतना छोटा होता है कि ये लोग चौपायों की तरह हाथ-पैर के बल उसके अंदर जाते है । ये लोग जमीन ही पर चटाई और कंबल बिछाकर सोते हैं और कंबल ही ओढ़ते भी हैं । तकिए का व्यवहार भी ये लोग करते हैं। इनके तकिए मुलायम चमड़े के होते है। ये लोग खाने की चीजें और कपड़े आदि बोरों में भरकर रखते हैं । बोरो के मुंह पर पीतल की छल्लियाँ लगी रहती है । उन्हीं छल्लियो में ताले डाले जाते हैं । इन सब चीजो के मिवा प्रत्येक झोपड़ी में रसोई बनाने के बरतन और तीर, भाले आदि अस्त्र भी रहते हैं। इनके भोजन की मुख्य मामग्री जंगली फल, दूध, मांस, शहद आदि है। इसके सिवा ये मछली, रोटी आदि भी खाते हैं । ये लोग शहद को बहुत पसंद करते हैं। जूलू लोगों में लड़के-लड़कियो की शादी उनके माता-पिता के अधीन है। साधारण तौर पर लड़केवाले की ओर से एक बैल लड़की के पिता के पास भेजा जाता है। यदि उसने उस उपहार को स्वीकार कर लिया, तो समझा जाता है कि शादी की म.हि.र.-4