पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२६

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422 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली किसी टापू में कावा बनाने का काम केवल कुमारिकाओं ही को करना पड़ता है। अतिथि-सत्कार करने में सामोआ के मूल निवासी सभ्य देश वालों से भी बढ़े- चढ़े हैं। वहाँ प्रत्येक गाँव में एक-एक ज़मींदार या राजा रहता है । अतिथियों के आदर- सत्कार का काम उसकी लड़की के सिपुर्द किया जाता है। उसे एक घर अलग दिया जाता है। बहुत-सी लड़कियाँ उसकी मदद के लिये नियत रहती है। जो लोग उस गांव में बाहर से जाते है, वे उसी घर में ठहरते हैं। उन्हे सब तरह का आराम दिया जाता है। इसमें जो ख़र्च पड़ता है, वह सब गाँव वाले चंदा करके देते हैं। वे लोग अच्छा- अच्छा मांस और मछली खुद ही खा जाना अनुचित समझते हैं। इन चीजों को वे अतिथि सत्कार के लिये रखते हैं। अब तो नहीं, पर पहले किसी समय टोगा आदि कई एक टापुओं में छोटे-छोटे लड़के देवताओं पर काटकर चढाए जाते थे। रोगियों को नीरोग करने के अभिप्राय से यह बलिदान बहुधा दिया जाता था। प्रधान-प्रधान पुरुषों की स्त्रियो को, उनके पतियों के मृतक-संस्कार के समय बहुधा फाँसी दे दी जाती थी। पर औरो के साथ ऐसा व्यवहार नही किया जाता था। मृतक-संस्कार ये लोग बड़े ही आडंबर से करते थे और अब भी करते है। कोई- कोई वर्ष-वर्ष, डेढ़-डेढ़ वर्ष तक सूतक मानते हैं। मरने के दूसरे दिन मुर्दे को गाड़ते और सब लोग सिर घुटाते हैं। स्त्रियों तक को अपने-अपने प्यारे और संवारे हुए बालो से हाथ धोना पड़ता है । मुर्दे की कब्र में उसके साथ उसके हार, गजरे, हड्डियां, सीपियां, कौड़ियां आदि रख दी जाती हैं। सूतक मनाने वाले फटी हुई चटाइयो के टुकड़े ही कमर से लपेटते है और एक वृक्ष-विशेष की पत्तियों की मालिका पहनते है । उनके सूतक की यही पहचान है। इन लोगों में बड़े आडंबर के साथ विवाह होता है। कभी-कभी एक कुमारिका के कई प्रणयी निकल आते है। उनमें लड़ाइयां हो जाती है। यहां तक कि मार-काट तक की भी नौबत आ जाती है। गुप्त विवाह किंवा गंधर्व-विवाह भी कभी-कभी हो जाते है और जायज़ समझे जाते हैं। प्रीति-ग्रंथि दृढ़ हो जाने से स्त्री-पुरुष का फिर कभी पारस्परिक वियोग नही होता। सालोमन नाम के टापुओं का जो समूह है, उसके निवासियों की आकृति बड़ी ही विभीषक होती है। वे लोग क्रूर और कुटिल स्वभाव के होते हैं । वलवान् भी बड़े होते हैं । शिकार में उनकी बराबरी और किसी टापू वाले नहीं कर सकते । लूट-पाट में भी उनका नंबर सबसे बढ़ा हुआ है। वे बहुधा अपनी नावों पर सवार होकर, धनुष- वाण तथा भाले धारण करके, पास-पड़ोस के टापुओं पर धावा मारते और जो कुछ पाते हैं, उठा लाते हैं। उनकी नावें बहुत बड़ी और बहुत मजबूत होती प्रत्येक नाव में चालीस-चालीस, पचास-पचास आदमी सवार हो सकते हैं। अपने शत्रुओं पर जब वे घावा मारते हैं, तब उनके शरीर में पूर्वाधिक बल-विक्रम का संचार हो जाता है । जो उनके बाणों से मारे जाते हैं, उनके सिर काट लेते हैं। उन्हें वे अपनी बस्तियों में जमा