पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्राचीन मेक्सिको में नरमेध-यज्ञ प्रेस्काट नाम के साहब ने अमेरिका के मेक्सिको देश के विजय किए जाने पर एक अच्छी पुस्तक अंगरेजी में लिखी है। उसी के आधार पर हम प्राचीन मेक्सिको के उन उत्सवों का हाल लिखते हैं, जिनमें वहाँ वाले नरमेध-यज्ञ करते थे । मेक्सिको वालो के युद्ध-देवताओं में एक देवता 'टैज़-कैटली-कोपा' नाम का था । 'टेज-कटली-कोपा' का अर्थ है-'संसार की आत्मा।' वह संसार का रचयिता माना जाता था। उसकी पूजा में मनुष्य का बलिदान होता था । प्राचीन काल में, मेक्सिको मे, मनुष्य के बलिदान की प्रथा थी तो; परंतु बहुत कम थी। चौदहवी शताब्दी मे उसने बहुत ज़ोर पकड़ा; और अंत में, सोलहवीं शताब्दी में, जब स्पेन वालो ने मेक्सिको पर अपना अधिकार जमाया, तब इस प्रथा का इतना प्राबल्य हो गया कि कोई पूजा इसके विना होती ही न थी। युद्ध में पकड़े गए कैदियो मे से एक सुदर युवक चुन लिया जाता था। वह 'टैज़- कटली-कोपा' का अवतार माना जाता था। उसका आदर और मत्कार भी वैमा ही होता था, जैसा टैज-कैटली-कोपा' की मूर्ति का। कई पुजारी उसके पास मदा रहते थे । वह बहुमूल्य और सुंदर-सुवासित वस्त्र धारण करना। फूलो की मालाएँ उसके गले में पड़ी रहती। जब वह घूमने निकलता, तब गजा के सिपाही उसके आगे-आगे चलते। चलते-चलते जब वह कहीं गाने लगता, तब उसके गाने की ध्वनि कानो में पड़ते ही लोग दौड़-दौड़कर उसके चरणों पर गिरते, और उसकी चरण-ग्ज उठाकर सिर पर धारण करते। चार सुंदर युवा स्त्रियाँ सदा उसकी सेवा करती। जिम समय से वे उसके पास रहने लगतीं, उस समय से लोग उन्हें देवी के पवित्र नाम से पुकारने लगते । एक वर्ष तक यह देवता खूब सुख भोगता। जहां जाता, वहाँ लोग उमका आदर करते और उसे खूब अच्छा भोजन खिलाते । वह जो चाहता, सो करता; कोई उसे टोकने वाला न था। वह एक बड़े भारी महल में रहता । जब जी चाहता, तब चाहे जिसके महल को अपने रहने के लिये खाली करा लेता । परंतु एक वर्ष के बाद उसका यह सब सुख मिट्टी में मिल जाता । बलिदान के दिन उसके सब बहुमूल्य कपड़े उतार लिये जाते । पुजारी लोग उसे 'टैज-कैटली-कोपा' के मंदिर में ले जाते । दर्शकों की भीड़ उसके पीछे-पीछे चलती। मंदिर के निकट पहुंचते ही वह अपने फूलों के हारो को तोड़-तोड़कर भूमि पर बखेग्ने लगता। अंत में उन मारंगियों और ढोलकों के तोड़ने की बारी आती, जो उमकी रंग- रेलियों के साथी थे । मंदिर में पहुंचते ही छ: पुजारी उसका स्वागत करते । इन छहो पुजारियों के बाल लंबे-लंबे और काले होते। वे कपड़े भी काले ही पहने रहते। उनके कपड़ों पर मेक्सिको की भाषा में लिखे हुए मंत्राक्षर चमकते रहते। छहों पुजारी उसे लेकर मंदिर के एक ऐसे ऊँचे भाग में पहुंचते, जहां उन्हें नीचे से सर्व-साधारण अच्छी