पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२९

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प्राचीन मेक्सिको में नरमेध-यज्ञ /425 तरह देख सकते। वहाँ पर उसे एक शिला पर लिटा देते। पुजारियों में से पाँच तो उमके हार-पैर जोर से पकड़ लेते और एक उमके पेट में छग भोंक देता और तुरंत ही उसका हृदय बाहर निकाल लेता, जिसे पहले तो वह मूर्य को दिखाता और फिर 'टेज- कैटली-कोपा' की मूर्ति के चरणों में डाल देता। देवता के चरणों पर हृदय-खंड के गिरते ही नीचे खड़े हुए सारे दर्शक झुक झुककर देवता की वंदना करने लगते । तत्पश्चात् एक पुजारी उठता और लोगो को समार की निम्मारता पर उपदेश देने लगना। अन मे वह कहता-'भाइयो, देग्यो, दुनिया कैसी बुरी जगह है। पहले तो सांमारिक बातो मे बड़ा सुख मिलता है, जैसे कि इस मनुष्य को मिला था, जो अभी मारा गया है, परंतु अत में उनसे बड़ा दुःख होता है, जैसा कि इम आदमी को हुआ। मासारिक सुखो पर कभी भगेमा मत करो, और न उन पर गर्व ही करो। यह तो इम वलिदान की माधारण गति थी । बलिदान किए जाने वाले व्यक्ति को बलिदान के समय प्रायः बहुत शारीरिक कष्ट भी पहुंचाया जाता था। उसे लोग शिला पर बिठा देते थे, और खूब पीटते थे। लातो और घुमो तक ही बात न रहती; लोग तोर आर रे तक उसके शरीर में चुभोते थे। उसका शरीर लोह मे लदफद हो जाता, और अंत मे वह इस यंत्रणा से विह्वल होकर पुजारियो से प्रार्थना करने लगता कि शीघ्र ही प्राण ले लो। वलिदान के लिये चुने गए व्यक्ति के माथियो मे से यदि कोई सेनापति या प्रसिद्ध वीर पुरुष होता, तो उस व्यक्ति के माथ थोडी-मी रियायत भी की जाती थी। उसके हाथ में एक ढाल और तलवार दे दी जाती थी। वह उपस्थित लोगो में से एक-एक से लडता। यदि वह जीत जाता, तो उसे अपने घर जीवित चले जाने की आजा मिल जाती। हार जाने पर चाहे वह एक दर्जन आदमियो को हगकर ही हारता- उमकी वही गति होती, जो और लोगो की होती थी। जव इस प्रकार का युद्ध होता, तब बलिदान के स्थान में एक गोल पत्थर रख दिया जाता । उसी के चारो ओर घूम-घूमकर वलिदान किया जाने वाला पुम्प लइना और दर्शक नीचे खड़े होकर युद्ध देखते। मेक्मिको वाले इन नरमेध-यज्ञो को अपने मनोरंजनार्थ न करते थे। उनकी धाम्मिक पुस्तको मे इस प्रकार के यज्ञो का बड़ा माहात्म्य गाया गया है । समय आने पर बलिदानो का न होना अशुभ समझा जाता था। कभी-कभी स्त्रियां भी वलिदान होती थी। जब पानी न बरसता, तब छोटे-छोटे बच्चे देवता की भेंट चढ़ाए जाते। पहले इन बच्ची को अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए जाते। फिर उन्हे बहुमूल्य चादर पर लिटाया जाता। इम चादर को पुजारी लोग तानकर उठाए हुए मंदिर में ले जाते। आगे वाजे बजने जाते, पीछे दर्शकों की भीड़ चलती। मपर में पहुँचकर बच्चो के गले में मालाएँ पहनाई जाती, और उनसे कहा जाता कि लो, अब तुम मारे जाते हो। वे वेचारे रोने लगते, परंतु पुजारियो का कठोर हृदय न पसीजता। वे लोग उनके उस समय के रोने को शुभ समझते। बच्चे मार दिए जाते और लोग समझते कि अब पानी अवश्य बरसेगा। पुजारी लोग वलिदान के लिये बच्चों को पहले ही से खरीद लेते थे। जिस बच्चे को कोई पुजारी बलिदान के लिये खरीदना चाहता, उसके बेचने में उसके माता-पिता को